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________________ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास यशोधर चरित्र, नेमीश्वर रास, सीता चरित्र आदि में धर्म, नीति, उपदेश को रस, छंद, अलंकार, लय आदि श्रेष्ठ साहित्यिक तत्त्वों के साथ इस प्रकार गुम्फित किया गया है कि वे संसार की किसी भी श्रेष्ठ भाषा के उन्नत साहित्य से टक्कर ले सकती हैं। परन्तु दुःख है कि तमाम ऐसी भी रचनायें है जिनमें धार्मिक, सिद्धांत, दर्शन, क्रियाकांड, अर्हत्, सिद्ध, साधु आदि की विरुदावली अनुपात से अत्यधिक हो गई है, कर्म सिद्धांत और भवभवांतर का नियम, पाप-पुण्य की चर्चा, दान, सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, मोक्ष आदि का उपदेश और कठिन साधुचर्या व्रत, उपवास, तीर्थ, संघयात्रा आदि की चर्चा अत्यन्त शुष्क शब्दावली में रूक्ष रूप से थोपने की चेष्टा की गई है। उनमें इसलिए रस नहीं है क्योंकि उनका उद्गम नीरस स्थलों से हुआ है। अतः उन्हें रसमय साहित्य में न रखकर साम्प्रदायिक साहित्य में परिगणित किया जाय तो अनुपयुक्त न होगा। कुछ रचनाओं में इन सिद्धान्तों को पवित्र मनोहारी दृष्टांतों की ओट में रखकर प्रस्तुत करने की समन्वित चेष्टा भी हुई है। ऐसी मध्यम कोटि की रचनाओं की संख्या पर्याप्त है जिनका विवरण आगे दिया जा रहा है । राजस्थान और गुजरात के जैन शास्त्र भंडारों में ऐसी रचनाओं की भी हस्तप्रतियाँ सुरक्षित हैं जो दरबारी कवियों द्वारा लिखी गई हैं, रीतिग्रस्त हैं और शृंगारप्रधान हैं। उन्हें छोड़ दिया गया है, यद्यपि उनका रचनाकाल १८वीं शती है और वे सशक्त रचनायें हैं। उनपर अलग से कार्य होना अपेक्षित है। इसी प्रकार भण्डारों में तमाम गुटके हैं जिनका संग्रह तो १८वीं शती में हुआ है किन्तु उनमें संकलित रचनायें अलग-अलग शताब्दियों की हैं, इसलिए उन्हें भी अभी छोड़ दिया गया है। जो रचनायें ली गई हैं वे जैन कवियों की हैं और जैन परंपरा के मेल में हैं। ऐसी रचनायें प्रबंध और मुक्तक दोनों काव्यविधाओं में लिखित हैं। इनका विषय प्रायः धार्मिक, दार्शनिक और पौराणिक विषयों पर आधारित हैं। कुछ रचनाओं में सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों तथा ऐतिहासिक घटनाओं और पात्रों का वर्णन किया गया है। इनके प्रमुख पात्र शलाकापुरुष, तीर्थंकर, सिद्धसाधु आदि हैं। किसी-किसी काव्य में किसी सती नारी को केन्द्रीय पात्र का महत्व प्रदान किया गया है जैसे सीताचरित्र। पुरातन महापुरुषों के चरित के लिए दिगंबर कवि पुराण एवं चरित दोनों शब्दों का प्रयोग करते हैं परन्तु श्वेताम्बर प्रायः चरित ही कहते हैं। पुराण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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