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________________ रंगविलासगणि ३८५ नाम अध्यात्म रास ही लिखा है। शायद मूलग्रन्थ अध्यात्म कल्पद्रुम था और कवि ने अध्यात्म रास नाम से उसका भाषान्तर किया है। इसका आदि इन पंक्तियों से हुआ है परम पुरुष परमेसर रूप, आदि पुरुष नइ अकल सरूप, सामी असरण सरण कहाय, सकल सुरासुर सेवे पाय । प्रणमी तास चरण अरविंद, खरतर गछपति श्री जिणचंद्र, संभारी श्री सद्गुरु नाम, भाषा लिखु संस्कृत ठाम । अध्यात्मकल्पद्रुम लाउ, श्री मुनि सुन्दर सूरि काउ । परमारथ उपदेशकरी, नवम शांत रसपति अणुसरी । अर्थात् मुनिसुन्दर कृत संस्कृत ग्रंथ अध्यात्म कल्पद्रुम का इन्होंने नवम् शांतरस प्रधान भाषांतर मरुगुर्जर में किया । रचनाकाल संवत सतर सतोत्तरे, मास शुक्ल वैशाख, रविवारे पाँचमि दिने, पूर्ण थयो अभिलाष । अंतिम पंक्तियाँ निम्नांकित हैं-- तास सीस गुरु चरण रज सम ते रंगविलास, निज पर आतम हित भणी, कीनो आदरि जास । भणिज्यो गणज्यो वांचज्यो, अ अध्यातम रास । जिम जिम मन मां भावस्यो, तिम तिम थस्ये प्रकास । कवि ने रचना का नाम अध्यातम रास कहा है। इनके किसी अन्य रचना की सूचना नहीं मिली है। यह रचना भी सामान्य स्तर का अनुवाद मात्र है और अन्य जैन साहित्यिक रचनाओं की तरह शांत रस पर आधारित उपदेश प्रधान रचना है अतः इसमें साहित्यिक विशेषताओं को ढूंढना अपेक्षित नहीं है । आध्यात्मिक दृष्टि से इसका महत्व हो सकता है। (भट्टारक) रत्नचंद द्वितोय-आप भट्टारक अभयचन्द्र की परंपरा में शुभचन्द्र के शिष्य थे। ये भी अपने गुरु की तरह हिन्दी प्रेमी साहित्यकार संत थे। इनकी चार रचनाएँ उपलब्ध हैं। आदिनाथ गीत, वलिभद्र गीत, चिंतामणि गीत और बाबनगजा गीत ।' इनके १. डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल-राजस्थान के जैन संत, पृ० २०९ । २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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