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________________ ३८४ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास शांति चरित्र थकी ए चउपइ कीधी निज मति सारि, मंगलकलश मुनि सतरंगा कह्या गुण आतम हितकारि । यह रचना अभयपुर के जिनालय में वहाँ के एक श्रावक नारायण दास के पुत्र के आग्रह पर की गई थी। गुरुपरम्परा इस प्रकार कही गई है गछ खरतर युगवर गुण आगलउ श्री जिनराज सुरिंद, तसु पट्टधारी सूरि शिरोमणि श्री जिनरंग मुणिंद । तासु सीस मंगलमुनिराय नउ चरित कहेउ ससनेह, रंगविनय वाचक मनरंगसु जिनपूजा फल एह । सासण नायक वीर प्रसाद थी चउपी चडीय प्रमाण, भणिस्यइ सुणिस्यइं जे नर भाव सुधारयइ तासु कल्याण । ए संबंध सरस रस गुण भरपउ भाष्य मति अनुसारि, धरमी जण गुण भावण मनरली, रंगविजय सुखकार।' एहवा मुनिवर निसिदिन गाइयइ सर्वगाथा दूहा ५३२ । श्री अगरचन्द नाहटा ने इनकी एक रचना 'कलावती चौपई की भी सूचना दी है। यह चौपई सं० १७०६ में खंभात में लिखी गई थी। इसका अन्य विवरण और उद्धरण उन्होंने नहीं दिया है । रंगविलास गणि-ये जिनचंद्र सूरि के शिष्य थे। ये जिनचंद्र अकबर द्वारा युगप्रधान पद प्राप्त ६१वें जिनचंद्र सूरि नहीं थे बल्कि ६५वें जिनचंद्र थे जिनके पिता का नाम सहसकरण और माता का नाम सुषिया देवी था। इनका मूल नाम हेमराज, दीक्षा नाम हर्षलाभ और सं० १७८३ में इनका स्वर्गवास हुआ था। इनके शिष्य रंगविलास ने अध्यात्म कल्पद्रुम चौपई की रचना सं० १७७७ वैशाख शुक्ल ५, रवि को पूर्ण की। श्री अगरचन्द नाहटा इसे अध्यात्म रास कहते हैं। इसे मोतीचन्द्र कापडिया ने प्रकाशित किया है। कवि ने भी इसका १. सम्पादक कस्तूरचन्द कासलीवाल-राजस्थान के जैन शास्त्रभंडारों की ___ ग्रंथसूची भाग ४, पृ० ५५ और १८५-१८६ । २. अगरचन्द नाहटा-परंपरा पृ० १०९ । ३. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० ५३४-३५ (प्र० सं०)। ४. अगरचन्द नाहटा-परंपरा पृ० ११० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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