SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इस शती की रचनाओं में शान्त, भक्ति और वियोग शृंगार रस की प्रधानता है, शेष रसों का वर्णन गौण है। शांत को जैन कवियों ने सर्वश्रेष्ठ रस माना है, कविवर बनारसीदास ने लिखा है 'नवमो शांत रसनको नायक' अर्थात् शृंगार रसराज नहीं बल्कि शांत को रसराज या नायक का पद जैन साहित्य में प्राप्त है। इसलिए अधिकतर कृतियों में शान्तरस की प्रधानता स्वाभाविक है। अन्य रस भी शांत में ही अन्तर्भुक्त किए जाते हैं। समयसार नाटक में बनारसीदास ने रसों का परिचय देते हुए लिखा है अद्भुत अनंत बल चितवन, शांत सहज वैराग धुव । नवरस विलास परगास तब, सुबोध घट प्रगट हुव ।। वीर और शृंगार रस की कुछ रचनायें अवश्य मिलती हैं पर इनसे अधिक परिमाण में भक्तिरस और उसके स्वरूप को स्पष्ट करने वाली कृतियाँ प्राप्त होती हैं। __ भक्तिरस का सुन्दर परिपाक पार्श्वपुराण, नेमीश्वर रास, नेमिनाथ मंगल जैसे ग्रन्थों के अतिरिक्त तीर्थंकरों की पंचकल्याणक स्तुतियों, बीसी, चौबीसी और स्तोत्रों आदि में हुआ है। शृंगार के मर्यादित पक्ष --दाम्पत्यभाव की व्यंजना नेमिचरित, नेमिव्याह, शिवरमणी विवाह तथा राजुल पच्चीसी जैसी रचनाओं में सुन्दर ढंग से हुई है। दांपत्यभाव के संयोग पक्ष को सीताचरित्र, श्रेणिक चरित, नेमीश्वर रास आदि में ढूढ़ा जा सकता है। नेमिनाथ चरित में राजुल द्वारा प्रियमिलन की उत्कंठा से किया गया शृंगार संयोगशृंगार का ही एक रूप है, यथा राजुल अपने महल में, कर सोडस सिंगार । रूप अधिक स्यौ अधिक छवि, नैना काजल सार । अथवा-- अनंग अंग आलिंग को, रंग बहुत उर मांहि । संग त्यागि उद्यम कियौ, रहै बनै अब नाहि ।। (सीताचरित्र पृष्ठ ७०) अथवा-कनक कलश कुच कटि मृग बाज, कदली थंभ जंघ सिरताज । नषशिष सोभा नृप बहु प्रीति, प्रानहुँ ते अति प्यारी रीति । (श्रेणिक चरित्र पृ० ३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy