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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
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ऐसे कुछ उदाहरण संयोग शृंगार के अवश्य ढूढ़े जा सकते हैं पर वे विरल हैं, इनकी अपेक्षा वियोग के वर्णन अधिक हैं क्योंकि वियोग में ही नारी के शीलनिरूपण का अच्छा अवकाश कवियों को मिलता है । उनके हृदय की कोमल वृत्तियों के प्रसार के लिए विप्रलंभ शृंगार अच्छा अवसर प्रदान करता है । उदाहरणार्थ 'नेमिराजुल बारहमासा' का एक स्थल प्रस्तुत है । वसंत कामदेव का सखा है । वसंत में विरह की पीड़ा का वर्णन करती हुई राजुल कहती है
पिय लागेगो चैत वसंत सुहावनो, फूलेंगी बेल सबै बनराई । फूलैंगी कामिनी जाको पिया घर फूलेंगे फूल सबै बनराई ॥ खेल हिंगे ब्रज के वन में सबै बाल गोपाल अरु कुंवर कन्हाई | नेमि प्रिया उठि आवो घरे तुम काहे करैहो तू लोग हसाई ॥ ( नेमिराजुल बारहमासा, संवाद पृ० ४२ )
ऐसा नहीं कि नारी का विरह ही व्यंजित किया गया हो, पुरुष की पीड़ा भी मार्मिक ढंग से प्रकट की गई है। सीताहरण के पश्चात् रामचन्द्र 'बालक' अपने प्रबन्ध सीताचरित में राम की विरह वेदना का मार्मिक निवेदन करते हैं
राम गयो चलि वेग दे, आगे सीता नाहि । मूर्च्छित धरनी परयो दुष व्यापी तन माँहि ॥ सावचेत ह्वौ तुरत, उठि करि चाल्यो राम । सबन को पूछत फिरैं, कहुँ देषी सीता बाम ॥
कवि की ये पंक्तियाँ हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवि तुलसीदास की इन पंक्तियों का स्मरण दिलाती हैं
हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी, कहुँ देखी सीता मृगनैनी ।
वीर और रौद्र के उदाहरण खोजने पर अवश्य मिल जायेंगे पर यह स्पष्ट है कि कवियों का मन इनमें नहीं रमा है । करुण रस के अपेक्षाकृत अच्छे और अधिक उदाहरण अवश्य उपलब्ध हैं । कृष्ण के महाप्रयाण के दुखद अवसर पर भाई बलभद्र का शोकोद्गार करुणरस का अच्छा उदाहरण है । (देखिये नेमिश्वर रास पृ० ७२ ) । सीताचरित से करुण का एक उत्तम प्रसंग दे रहा हूँ । जब सेनापति सीता को निर्दिष्ट जंगल में ले जाकर रथ से उतार देता है तो वह आत्मधिक्कार
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( रामचरितमानस)
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