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________________ मरुगुर्जर हिन्पी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास १९ नेमिचन्द्रिका, श्रेणिक चरित आदि प्रबन्ध काव्यों में चालों का प्रयोग किया गया है । प्रायः सभी जैन काव्यों में अनेक प्रकार के ढालों का प्रयोग मिलता है। ढाल या ढार शब्द से लयात्मकता ध्वनित होती है। वस्तुतः गेयता ढाल की प्रथम विशेषता है। इसका प्रचलन कब से हआ, क्या ये शास्त्रीय राग-रागिनियों पर आधारित हैं अथवा लोकगीतों और धुनों पर ढले हैं, इनकी क्या विशेषतायें हैं, कितनी संख्या है, इनसे क्या सुविधा कवि को होती है, यह एक स्वतन्त्र ग्रन्थ का विषय है। अकेले देसाई (मोहनलाल दलीचंद) ने 'जैन गुर्जर कवियो' में हजारों ढालों का उदाहरण देकर एक बड़े महत्वपर्ण कार्य का श्रीगणेश किया है जिसे आगे बढ़ाना जैन विद्या के अनुसंधित्सुओं का दायित्व है । अभी इन प्रश्नों का समुचित उत्तर मेरे पास नहीं है पर इतना अवश्य कह सकता हूँ कि ये ढाल लोकगीतों की भाँति लोकहृदय से निकले हैं और लोकमानस को स्पर्श करते हैं, इसलिए जनप्रिय होते हैं। अकेले नेमीश्वर रास में १०१० ढाल हैं। कवि छन्द लिखने से पूर्व ढाल का उदाहरण बराबर देता चलता है जैसे 'चेत मन भाई ई' ए देशी, या 'दान सुपात्रन दीजिए' ए देशी इत्यादि । चालों, ढालों के अलावा अन्य परंपरित छन्दों में दोहा, सवैया, कवित्त, सोरठा आदि मात्रिक छन्दों का प्रयोग अधिक हुआ है। ये रचनायें नाना काव्यरूपों और शैलियों में आबद्ध हैं। काव्यरूपों की चर्चा पूर्व खण्ड में की जा चुकी है। प्रायः वे सभी काव्यरूप इस शती में भी प्रचलित थे । जैन कवियों ने अपनी रचनाओं को कहीं संवाद या प्रश्नोत्तर शैली में, कहीं प्रबोधन शैली में, कहीं उपदेशात्मक और कहीं व्यंग्य या उपालंभ शैली में प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है। रूपक शैली में मनोभावों का मानवीकरण भी इस शती की रचनाओं में अधिक मिलता है। इन रूपक या प्रतीकात्मक काव्यकृतियों में चेतन को प्रायः नायक का पद प्रदान किया गया है। भारतीय परंपरा के अनुसार जैन काव्यों में अन्ततः हिंसा पर अहिंसा की, असत्य पर सत्य की, पाप पर पुण्य की और राग पर विराग की विजय दिखाई गई है इतना सब होते हए भी यूग का प्रभाव धर्म की ढाल के भीतर से भी झाँकतादिखाई पड़ जाता है । अलंकरण की प्रवृत्ति और शृङ्गार युक्त वर्णनों का सम्पूर्ण त्याग काव्य में सम्भव भी नहीं होता, इसलिए यदि इस शती की रचनाओं में उनका कहीं-कहीं प्रवेश हो गया है तो अस्वाभाविक कदापि नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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