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________________ भूधरदास पार्श्वनाथ स्तोत्र-- यह भी जिनवाणी संग्रह में प्रकाशित है। इसमें २२ पद्य हैं। दोहे, चौपाई, छन्दों का प्रयोग किया गया है। पार्श्वनाथ स्तुति की अपेक्षा यह स्तोत्र अधिक मर्मस्पर्शी है, एक स्थल पर भक्त अपनी लघुता का वर्णन करता हुआ कहता है-- प्रभु इस जग में समरथ ना कोय, जासो तुम यश वर्णन होय । चार ध्यानधारी मुनि थक, हमसे मन्द कहा करि सके।' पार्श्व पुराण -यह एक महाकाव्य है। इसके सम्बन्ध में प्रेमी जी ने लिखा है हिन्दी के जैन साहित्य में पावपुराण ही एक ऐसा चरित्र ग्रंथ है जिसकी रचना उच्च श्रेणी की है, जो वास्तव में पढ़ने योग्य है और जो किसी संस्कृत, प्राकृत ग्रन्थ का अनुवाद करके नहीं किन्तु स्वतन्त्र रूप से लिखा गया है। इसकी रचना में काव्य सौन्दर्य और चमत्कार है। साथ ही इसकी भाषा प्रसादगुण संपन्न है। यह महाकाव्य सं० १७८९ में रचा गया--- संवत सतरह से समय और नवासी लीय, सुदि अषाढ़ तिथि पंचमी, ग्रंथ समापत कीय । यह ग्रन्थ नौ अधिकारों में पूर्ण हुआ है। इसमें तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का सांगोपांग चरित्रांकन हुआ है। भक्तिरस की प्रधानता है। यह दोहे-चौपाई छन्दों में आबद्ध है । इसमें पार्श्व के पूर्व भवों से लेकर निर्वाण काल तक की कथा है। इस मुख्य कथा के साथ सुसम्बद्ध कई अवान्तर कथायें भी हैं। शांतरस के साथ अन्य रसों का भी यथास्थान उपयोग किया गया है। दोहा-चौपाई के अलावा कहीं-कहीं सोरठा और छप्पय का भी प्रयोग मिलता है। प्रारम्भ में मंगलाचरण में भी पार्श्वनाथ की ही स्तुति है, यथा-. बाघ सिंह वश होहि, विषम विषधर नहि डंक; भूत प्रेत बेताल, व्याल वैरी मन शंकैं। १. डा० प्रेमसागर जैन-हिन्दी जैन भक्तिकाव्य और कवि पृ० ३३५-३४८ । २. नाथूराम प्रेमी--हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, बम्बई। ३. डा० लाल चन्द जैन -- जैन कवियों के ब्रजभाषा प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन पृ० ८२-८३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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