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________________ ३४० म गुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास श्रृंखला नहीं कटती । चूँकि जैन गुरु प्रखर तपस्वी होता है इसलिए वह अपने कर्मों का निर्जरा करके शिष्य को भी कर्मबन्धन से मुक्त कराता है, यथा- जेठ तपै रवि आकरो, सूखे सरवर नीर, शैल शिखर मुनि तप करें, दाझै नगन शरीर । गुरु मेरे मन बसो । बारह भावना – इसमें संसार की असारता का मार्मिक वर्णन है, यथा राजा राणा छत्रपति, हाथिन के असवार, मरना सबको एक दिन, अपनी अपनी बार । यह कृति ज्ञानपीठ पूजांजलि और अन्य अनेक स्थलों से प्रकाशित है । जिनेन्द्र स्तुति - जिनवाणी संग्रह में इनकी तीन जिनेन्द्र स्तुतियों का प्रकाशन हुआ है । इनमें से एक स्तुति 'ज्ञानपीठ पूजांजलि' में भी छपी है । भूधर दास्यभाव की भक्ति में विश्वास करते हैं, वे कहते हैंजै जग पूज परम गुरु नामी, पतित उधारन अंतर जामी, दास दुखी तुम अति उपगारी, सुनिए प्रभु अरदास हमारी । एकीभाव स्तोत्र - यह वादिराज के एकीभाव स्तोत्र का अनुवाद है । जिनेन्द्र भगवान की भक्ति रूपी गंगा स्याद्वाद् रूपी पर्वत से निकलकर भक्तों को पवित्र करती मोक्षरूपी समुद्र में मिल जाती है, यथास्याद्वाद गिरि उपजे मोक्ष सागर लौं धाई, तुम चरणाम्बुज परस भक्ति गंगा सुखदाई | इत्यादि । कवि ने पार्श्वनाथ की स्तुति में कई रचनाएँ की हैं जैसे पार्श्वनाथ स्तुति, पार्श्वनाथ स्तोत्र और पार्श्व पुराण । प्रथम दो सामान्य रचनायें हैं किन्तु पार्श्वनाथ पुराण असाधारण रचना है । इनका परिचय आगे दिया जा रहा है । पार्श्वनाथ स्तुति भगवान पार्श्वनाथ की महिमा का गान करता हुआ कवि उनके नाम के माहात्म्य का वर्णन करता है पारस प्रभु को नाऊँ, सार सुधारस जगत में, मैं बाकी बलि जाऊँ, अजर अमर पद मूल यह । यह जिनवाणी संग्रह में प्रकाशित है । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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