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________________ भूधरदास ३३९ तुम त्रिभुवन में कलपतरुवर, आस भरो भगवान जी ना हम मांगे हाथी घोड़ा, ना कछु संपति आन जी भूधर के उर बसो जगतगुरु, जब लौं पद निरवान जी। भक्ति के प्रधान अंग ध्यान और नाम जप का महत्व बताते हुए कवि एक पद में कहता है जपि माला जिनवर नाम की; भजन सुधारस सों नहि धोई, सो रसना किस काम की। पदसंग्रह - यह ८० पदों का संग्रह है और जैनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता से प्रकाशित है। पदों का वर्ण्य विषय प्रायः जिनेन्द्र भक्ति, गुरु भक्ति और जिनवाणी है, यथा भगवंत भजन को भला रे, यह संसार रैन का सुपना, तन धन नारी बबूला रे। इत्यादि। इसकी कुछ पंक्तियाँ अतिशय प्रचलित हैं, यथा चरखा चलता नाही, चरखा हुआ पुराना, पग खूटे इम हालन लागे, उर मदरा खखराना।' पता नहीं कब मृत्यु आ जाय इसलिए जो समय मिला है उसमें भजन करो जिनराज चरण मन मति विसरै, को जानै किहिं बार काल की धार अचानक आनि परै। परमार्थ जखड़ी - हर्षकीर्ति, रूपचंद, दौलतराम, रामकृष्ण और जिनदास आदि अनेक कवियों ने जखड़ी लिखी है । भूधरदास की जखड़ी केवल पाँच पद्यों की संभवतः सबसे छोटी है। पन्नालाल बाकलीवाल द्वारा संपादित जिनवाणी संग्रह में इसका प्रकाशन हुआ है। इससे एक उदाहरण ___ अब मन मेरे बे सुन सुन सीख सयानी । जिनवर चरनन बे, कर कर प्रीति सुज्ञानी। गुरुस्तुति-गुरुवाणी संकलन में इनकी दो गुरुस्तुतियाँ प्रकाशित हैं। इनमें कवि का मुख्य कथ्य यह है कि गुरु की कृपा के बिना कर्म १. कामताप्रसाद जैन-हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृ० १७२ १७५। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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