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________________ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास श्री पार्श्वनाथ के पदकमल, हिये धरत निज एकमन । छूटै अनादि बन्धन बँधे कौन कथा विनशै विघन । तपस्वी पार्श्व पर कमठ के जीव ने बड़ा उपसर्ग किया, पार्श्व सब हँसते हँसते झेल गये उसका एक चित्र देखिये ---- किल किलंत वैताल, काल कज्जल छवि छज्जहिं, भौं कराल विकराल, भाल मदगज जिमि गज्जहिं । इहि विधि अनेक दुर्वेष धरि, कमठ जीव उपसर्ग किय, तिहुँ लोक वंद्य जिनचंद्र प्रति, धूलि डाल निज सीस लिय । सज्जन और दुर्जन के विषय में कवि की एक उक्ति देखिए--- उपजे एकहि गर्भ सौं, सज्जन दुर्जन येह, लोह कवच रक्षा करैखांडो खंडै देह । तपे तवा पर आय स्वाति जल बूंद विनंती, कमलपत्र परसंग लही मोती सम दिट्ठी ।' इसकी अंतिम पंक्तियों में भगवान पार्श्वनाथ को केवल ज्ञान होने पर इन्द्र के समवशरण में आने का वर्णन है-- तिस कारण करुणानिधि नाथ, प्रभु सनमुख हम जोरे हाथ, जब लो निकट होय निरवान, जग निवास छूटै सुख दान । तब लो तुव चरणाम्बुज बास, हम उर होहु यही अरदास । और न कछु वांछा भगवान, यह दयाल दीजै वरदान । इनकी भक्ति भावना पर तुलसी की भक्ति रचनाओं का प्रभाव झलकता है। इन्हीं ऊचाइयों के कारण यह समस्त हिन्दी जैन काव्य साहित्य में वस्तुतः सराहनीय रचना बन पड़ी है। ____ ढोलियों के दिगम्बर जैन मंदिर में सुरक्षित ६४८ वें पाठ संग्रह में इनकी तीन रचनायें और प्राप्त हुई हैं -- गजभावना, पंचमेरु पूजा और वज्रनाभि चक्रवर्ती की वैराग्य भावना। इनमें से तीसरी रचना जिनवाणी संग्रह में छप गई है। अन्य रचनाओं में बाईस परीषह लघु होते हुए भी महत्वपूर्ण हैं जो जिनवाणी संग्रह में प्रकाशित हो चुकी है। रचनाओं की संख्या और उनके काव्यत्व की विशिष्टता को देखते हुए १. डा. प्रेमसागर जैन -हिन्दी जैन भक्तिकाव्य और कवि, प० ३३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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