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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कथाकोश में वर्णित श्रेष्ठिसुत बुद्धिल और सती विमला की कथा पर आधारित इस रचना में वही गुरु परम्परा दी गई है जो पहले लिखी जा चुकी है। रचनाकाल इन पंक्तियों में वर्णित है ---
संवत नव नव घोउलो चंद्र समित हो जाणो नरह सुजाण, मगसीर सूद दिन बीजडी गुरुवारे हो सुन्दर सुखखांड । अणहिलपुर पाटणे ढंढेर वडि हो वसति सुविशाल, दीपे मनोहर देहरा देखतां हो जाई पाप नी झाल । तिहां रास रच्यो भलो मतिसार हो आणि नूतन ढाल, बुद्धिल सती विमला तणों, मिठो रुडो हो संबंध रसाल। बीजे खंडे सोलमी पूरण करुरे ओ सुन्दर ढाल, भावप्रभ सूरि कहें सांभलतां हो होई मंगलमाल । इन वृहत् रचनाओं के अतिरिक्त भावप्रभ ने गुरु महिमा चौपई ९ कड़ी, सुशिष्य लक्षणाधिकार चौपई ७ कड़ी, कुशिष्य लक्षण परिहरण चौपई १३ कड़ी और धन्नाजी संज्झाय ५ कड़ी, राजिमती रहनेमि संज्झाय १६ कड़ी, स्थूलिभद्र मुनि संज्झाय १६ कड़ी और जम्बूस्वामी संज्झाय ७ कड़ी आदि कई छोटी रचनाएँ की है। इनमें राजिमती रहनेमि और स्थलिभद्र संज्झाय जैसी कुछ मनोरम कृतियाँ भी हैं। इन्होंने संज्झाय और सवैये कई लिखे हैं जिनमें नववाड संज्झाय, मोटु संज्झाय माला संग्रह में प्रकाशित हैं। 'तेर काठिया संज्झाय, नेमिविवाह तथा नेमनाथ जी नो नवरसों में प्रकाशित हो चुकी है । आषाढ़ भूति संज्झाय (५ ढाल) जैन संज्झाय संग्रह ( साराभाई नवाब ) तथा मोट संज्झाय माला संग्रह में प्रकाशित हैं। इनमें से नववाड संज्झाय के आदि अंत की पंक्तियाँ प्रस्तुत हैंआदि- उठि सवारे सामयिक कीधू पण वारणु नवि दीडूं, अन्त- भावप्रभ सूरि कह नहि कथलो अध्यात्म उपजावो जी। ___इन्होंने आदि जिन सवैया १५ कड़ी और २४ जिनसवैया २४ कड़ी आदि जिन स्तुतियाँ भी भक्तिभाव पूर्ण लिखी हैं। शालिभद्र धन्ना ऋषि संञ्झाय २७ कड़ी, मेघकूमार संज्झाय ११ कड़ी इनकी अन्य उल्लेखनीय पद्य रचनाएँ हैं।' १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० ५०३-५११
और भाग ३, पृ० १४२४ से १४३२ तथा १६३९ (प्र०सं०) और भाग ५, पृ० १६५-१७९ (न०सं०)।
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