SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीदास ३१७ स्थान किया है । नाथूराम प्रेमी ने ब्रह्मविलास का कर्त्ता निर्भ्रान्त रूप से भैया भगवतीदास को बताया है । इसी ग्रंथ के द्वितीय खण्ड में भगौतीदास के बारे में विवरण देते हुए कहा जा चुका है कि एक ही समय के आसपास तीन-चार भगवती दास हो जाने से उनकी रचनाओं के निर्धारण में उलझनें आती हैं किन्तु प्रायः सभी विद्वान् मानते हैं कि ब्रह्मविलास भैया भगवतीदास की रचना है । अतः इनकी रचनाओं में सर्वप्रथम उसी का विवरण दिया जा रहा है । ब्रह्मविलास - (सं० १७५५ वैशाख शुक्ल तृतीया, रविवार) का रचनाकाल इन पंक्तियों से समर्थित है -- संवत सत्रह पंचपचास, ऋतु बसंत वैशाख सुमास; शुक्ल पक्ष तृतिया रविवार, संघ चतुर्विध को जयकार | ' यह रचना जैन ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई से सन् १९०३ में प्रकाशित हो चुकी है । इसमें उनकी ६७ रचनाएँ संकलित हैं जिसमें चेतनकर्म चरित्र, बावीस परीषह, गूढ़ाष्टक, वैराग्य पचीसिका, पंचेन्द्रियसंवाद, मनबत्तीसी, स्वप्नबत्तीसी और परमात्मशतक आदि विशेष महत्व की हैं । इसमें कई स्तुति, स्तवन, स्तोत्र जैसे जिनपूजाष्टक, चतुर्विंशति जिनस्तुति, तीर्थंकर जयमाल आदि भी संग्रहीत हैं । रचनाओं में अनेक भक्तिप्रवण गेय पद भी सम्मिलित हैं । कहा जाता है कि दादूपंथी सुंदरदास, कवि केशवदास और भैया भगवतीदास गुरु भाई थे, किन्तु यह किंवदंती लगती है क्योंकि ये लोग समकालीन नही हैं । आचार्य केशवदास की मृत्यु सं० १६७४ के आस पास हुई थी और भैया भगवतीदास का रचनाकाल सं० १०३१ से ५५ के बीच प्रमाणित है । इसलिए यह कहना ठीक हो सकता है कि सुंदरदास और भगवतीदास ने केशवदास के रसिकप्रिया की कटु आलोचन की, किन्तु ये समकालीन और गुरुभाई थे यह कहना असंगत और अप्रमाणित है । यह अवश्य है कि उनकी कविता में केशव की तरह अलंकार बहुलता है. रूपक, यमक और अनुप्रास की भीड़ है । ब्रह्मविलास में अनुप्रास की योजना सर्वत्र दर्शनीय है । अनुप्रास - युक्त वीररस का एक छन्द नमूने के लिए प्रस्तुत है १. डा० प्रेमसागर जैन -- हिन्दी जौन भक्तिकाव्य और कवि पृ० २६८-२७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy