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________________ ३१८ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अरिन के ठठ्ठ दहबट्ट कर डारे जिन, करम सुभट्टन के पट्टन उजारे हैं। नर्क तिरजेत चटपट्ट देके बैठ रहे, विषै चोर झट्ट झट्ट पकर पछारे हैं । ब्रह्म विलास के अन्त में कवि ने अपना समय और वंश आदि बताया है, यथा जंबु द्वीप माँहि छिन भर्ता नामें आर्य खंड विसारता, तिहाँ उग्रसेनपुर थाना, नगर आगरा नाम प्रधाना। X दशरथ साह पुण्य के धनी, तिनके ऋद्धि वृद्धि अति घनी। तिनके पुत्र लालजी भये, धर्मवंत गुनगन निरमये । तिनके नाम भगोतीदास, जिन इह कीनो ब्रह्मविलास । जामे निज आतम की कथा, ब्रह्मविलास नाम हे जथा। रचनाकाल का दूसरा पाठ भी प्राप्त है, यथा-- संवत सतरे से पंचावन, सुबे शाम वैसाख सोहावन, शुक्ल पक्ष तृतिये रविवार, संघ चतुर्विध जय जयकार। पढ़त सुनत सबको कल्याण, प्रगट होय निज आतम ज्ञान, भैया नाम भगौतीदास, प्रकट कियो जिन ब्रह्मविलास' । ब्रह्मविलास के पृ० २९२ से ३०४ पर चित्रवद्ध कविता संकलित है जिसमें अन्तर्लापिका और वहिर्लापिका भी निबद्ध हैं। अलंकार प्रियता भले केशव जैसी हो पर शृंगार विशेषतया अश्लील श्रृंगार का बहिष्कार भरसक भैया ने किया है। भैया भगवती दास की कविता पर रीति कालीन हिन्दी काव्य शैली का भरपूर प्रभाव छन्द, अलंकार और भाषा योजना में दिखाई पड़ता है पर भाव भक्ति और अध्यात्म परक हैं न कि शृंगार प्रधान । एक उदाहरण द्वारा अपनी बात पुष्ट करना चाहूंगा :-- १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कविओ, भाग ४, पृ० १२७९. १२८० (प्र०सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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