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________________ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास श्री कामताप्रसाद जैन ने 'वचनकोश' के रचयिता का नाम बुलाकीचंद दिया है । उन्होंने यह नाम तथा संबंधित विवरण अनेकांत वर्ष ४ के अंक ६, ७, ८, ९ और १० के आधार पर अपने ग्रंथ 'हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, (पृ० १८२) में दिया है, किन्तु यह नाम भ्रामक प्रतीत होता है। संभवतः बुलाकीदास के स्थान पर भ्रमवश बुलाकीचंद लिख दिया गया है । जो हो, वचनकोश बुलाकीदास की ही रचना है, वे अपना नाम बुलाकीचंद नहीं लिखते ।' बेलजीमुनि-ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में बेलजी मुनि की एक लघु कृति 'जिनसुख सूरि निर्वाणगीतम्' ( ९ कड़ी ) संकलित है जिसका आदि निम्नवत् है-- सहीया चालौ गुरु वांदिवा, सजि करि सोल सिंगार, सहेली भाव सुं केसर भरीय कचोलड़ी महि मेलि घनसार । निर्वाणकाल -सतरै सै असी यै जेठ किसन जग जांण, असासण करि आराधना, पाम्यो पद निरवाण । अंत - नामै नवनिधि संपजै, आरती अलगी थाय, कर जोड़ी बेलजी कहै, लुलि लुलि लागै पांय ।। (भैया) भगवती दास --आप आगरा निवासी लालजी साहु के सुपुत्र थे। इनके पितामह दशरथ साहु कटारिया गोत्रीय ओसवाल वैश्य और आगरा के सम्पन्न पुरुषों में थे । भगवतीदास साहित्यक्षेत्र में 'भैया' उपनाम से विख्यात हैं। ये प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी, गुजराती और बंगला के अच्छे जानकार थे । औरंगजेब के समकालीन आगरे के प्रतिष्ठित परिवारों में उर्दू-फारसी का प्रचलन होने के कारण भैया भगवतीदास ने भी उर्दू-फारसी का अभ्यास किया था। इन्होंने अपनी रचनाओं में कहीं-कहीं भैया के अलावा भविक और दासकिशोर उपनाम का भी प्रयोग किया है। आपकी काव्य रचनाओं में अध्यात्म और भक्ति का समन्वय है। इन्होंने ओजपूर्ण भाषा में वीररस का प्रयोग भी बीच-बीच में यथा१. कामताप्रसाद जैन--हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास पृ. १८२ २. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह 'जिनसुखसूरि निर्वाणगीतम्' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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