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________________ बुलाकीदास चारित्रिक संघर्ष का भी वर्णन किया गया है। द्यूतक्रीड़ा कितनी भयंकर परिणामवाली है यह बड़े मार्मिक ढंग से इसमें व्यंजित किया गया है। इनकी माता जैनी ने शुभचन्द्र भट्टारक कृत संस्कृत पाण्डवपुराण पढ़ कर उसको हिन्दी में रचने की आज्ञा बुलाकीदास को दी, तदनुसार यह रचना हुई। इसमें ५५०० पद्य हैं। रचना मध्यम श्रेणी की है। कहीं-कहीं कवि-प्रतिभा की झलक भी दिखाई पड़ जाती है। काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा हिन्दी ग्रंथों के खोज के त्रैवार्षिक पन्द्रहवें विवरण में इस कृति की प्रशंसा की गई है, किन्तु जैन विद्वान् नाथूराम प्रेमी इसे औसत दर्जे की रचना बताते हैं क्योंकि इसका मूल ग्रंथ ही उतना अच्छा नहीं है। इसके प्रारंभ का छप्पय देखिए संवत सत सुरराय स्वयं सिद्धि शिव सिद्धमय, सिद्धारथ सरबस नय प्रमाण सो सिद्धि जय । करम कदन करतार करन हरन कारन चरन असरन सरन अम्बार मदन दहन साधन सदन, इह विधि अनेक गुणगण सहित, जगभूषण दूषण रहित, तिहि नंदलाल नंदन नमत सिद्धि हेत सरवज्ञ नित । युद्धवर्णन की कुछ पंक्तियाँ भी प्रस्तुत हैंहस्तहस्त पगपग भिरत सीस सीस सों मार, अधर जुवै लोचन अरुन, स्वेद दिपत तनसार । जैन चौबीसी--यह भक्तिभाव पूर्ण रचना है। इसमें १९६ अनुष्टुप छंद हैं। ये सभी २४ तीर्थंकरों की भक्ति से संबंधित है। भगवान आदिनाथ की वंदना का एक पद अग्रलिखित है -- वंदौ प्रथम जिनेस को, दोष अठारह चूरी, वेद नक्षत्र ग्रह औरष, गुन अनंत भरी पूरी। नमो करि फेरि सिद्धि को अष्ट करम कीए छार, सहत आठ गन सो भइ, करै भगत उधार। आचारज के पद फेरि णमो, दरी अंतर गति भाउ, पंच अचरजा सिद्धि ते, भारै जगत के राउ ।* १. डा० लालचन्द जैन--जैन काव्यों के ब्रजभाषा प्रबन्ध काव्यों का अध्ययन पृ० ९१ । २. डा० प्रेमसागर जैन--हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि पृ० २९०-२९३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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