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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद इतिहास
बवविजय तपागच्छीय विजयदेवसूरि 7 विजयसिंह सूरि 7 गजविजय > गुणविजय > हेतविजय > ज्ञानविजय आपके गुरु थे । आपने सं० १८०० से पूर्व 'योगशास्त्र बालावबोध' की रचना की । इसके गद्य का नमूना प्राप्त नहीं हो पाया । "
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बुद्धिविजय -- आपके संबंध में कोई विवरण उपलब्ध नहीं है । आपने सं० १९१२ आषाढ़ शुक्ल १० को 'जीव विचार स्तव' लिखा जिसका उद्धरण अनुपलब्ध है । इसलिए यह निश्चय नहीं हो पाया कि ये तपागच्छीय ज्ञानविजय के शिष्य बुधविजय ही हैं या अन्य कोई लेखक हैं ।
बुलाकीदास -- रचनाकाल सं० १७३७ से १७५४
आपका परिवार मूलतः बयाना का निवासी था; इनके दादा लाला श्रमणदास बयाना छोड़कर आगरा रहने लगे थे । कवि के पिता का नाम नंदलाल था । इनके पिता (नंदलाल ) के गुणों से प्रसन्न होकर पंडित हेमराज ने अपनी पुत्री 'जैना' का विवाह इनसे कर दिया था । माता पिता के पुण्यप्रभाव से बुलाकीदास रूपवान्, विद्वान् और कवि हो गये । ये लोग गोयलवंशीय अग्रवाल थे । इन्होंने अनेक उत्तम रचनायें की हैं जिनमें वचनकोश, प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, पाण्डवपुराण और जैन चौबीसी आदि प्रमुख हैं ।
जैनवचन कोश (सं० १७३७) जैन सिद्धान्त विषय पर पद्यबद्ध कृति है । इसके पद्य सरल और सुबोध हैं ।
प्रश्नोत्तर श्रावकाचार (सं० १७४७ ) जैनधर्मानुसार श्रावकों के आचार का निर्देश इसमें किया गया है । यह भी हिन्दी में पद्यबद्ध रचना है । इसमें कुछ स्थल साहित्यिक सरसता से संयुक्त हैं; पाण्डवपुराण इनकी प्रसिद्ध रचना है यह सं० १७५४ में रचित है । यह सर्गवद्ध है । इसमें पाण्डवों के जीवनसंघर्ष के साथ ही द्रौपदी के १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई --र्जन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० १६४८ (प्र०सं० ) और भाग ५ पृ० ३७० ( न०सं० ) |
२. वही भाग ३, पृ० ११९५ ।
३. सम्पादक डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल - राजस्थान के जैन शास्त्र भंडारों
की ग्रंथसूची, भाग ४, पृ० १५० ।
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