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________________ बिहारीदास ३१३ अक्षर ज्ञान न मोहि छंद भेद समझ नहीं, बुध थोरी कीम होय भाषा अक्षर बावनी। इसमें जिनेन्द्र के चरणों में चित्त रमाने का संदेश दिया गया है, जैसे लागि धरम जिन पूजिये, सांच कह्यो सब कोइ, चित प्रभु चरन लगाइयो, तब मनवंछित फल होइ। जखड़ी—यह एक प्रकार स्तोत्र है। जैनभक्तिसाहित्य में इसकी परम्परा पुरानी है । इस जखड़ी में ३६ पद्य हैं और पंचासिका से दो वर्ष पूर्व की यह रचना है। इसमें तीर्थों, चैत्यों और आचार्यों की वंदना है, एक उदाहरण लीजिए-- शिखरी देश के मध्य विराजै सम्मेदाचल वंदौ जी, कर्म काटि निर्वाण पहुँच्या, बीस जिनेश्वर वंदौजी । जिनेन्द्र स्तुति -यह कृति वृहज्जिनवाणी संग्रह के पृष्ठ १२६ पर प्रकाशित है। यह भगवान के सून्दर स्वरूप पर मुग्ध भक्त की भाव पूर्वक की गई स्तुति है; नमूने के लिए दो पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं-- वस्त्राभरण बिन शांतमुद्रा सकल सुरनर मन हरै, नासाग्र दृष्टि विकार वजित, निरखि छवि संकट टरै। आरती --यह आतमदेव की आरती है, यथा करो आरती आतम देवा, गुण पर जाप अनंत अभेवा, जामै सब कह वह जग माही, वसत जगत में जग समा नाही।' बन्द -ये औरंगजेब के दरबार में थे और उसके पोते अजीमुश्शान के आश्रित थे। इन्होंने सं० १७६१ कार्तिक शुक्ल ७, सोमवार को ढाका में 'सतसैया वृन्द विनोद' नामक काव्यग्रंथ की रचना की जिसके रचनाकालादि का उल्लेख इन पंक्तियों में है ...-. संवत शशि रस वार शशि, काति सुदी शशिवार, सातै ढाका सहर मै, उपज्यौ यहै विचार । इसकी प्रतिलिपि चारित्रोदय मुनि के गुरुभाई माणिक्योदय ने सं० १८२२, बालोतरा में लिखी। 1. डा० प्रेमसागर जैन--हिन्दी जैन भक्तिकाव्य और कवि, पृ० ३२२ । २ . मिश्रबन्धु--मिश्रबन्धु विनोद, पृ० ४९५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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