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________________ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास साहित्य के प्रभाववश उदयचंद मथेन और उदयरत्न आदि कुछ कवियों ने रीति और शृङ्गारी रचनायें की हैं। १८वीं शती के उत्तरार्द्ध में प्रबन्धों की तुलना में मुक्तक और स्फुट रचनायें अधिक हुई। उनमें दोहा, सवैया, चौपाई आदि छंदों का प्रचुर प्रयोग हुआ है। हेमराज का दोहाशतक, दौलतराम का विवेकविलास इसी प्रकार की कृतियाँ हैं। १९वीं शती के प्रारम्भ तक यह स्थिति बनी रही और बुधजन ने बुधजन सतसई और नवल ने दोहापच्चीसी आदि लिखी। ये रचनायें रीति शैली के प्रभाव की सूचक हैं किन्तु इनके शिल्प और रूपविधान तक ही वह प्रभाव सीमित है इनका वर्ण्य-विषय सर्वथा भिन्न है। इनमें अहिंसा और सदाचरण की स्तुति तथा मांसभक्षण, परस्त्रीगमन, अहंकार आदि की निन्दा की गई है। छंद अवश्य दोहे ओर सवैये हैं। ढढ़ाणी कवियों में जोधराज और पार्वदास के सवैये मनोहारी है। जोधराज की ज्ञानसमुद्र और धर्मसरोवर उत्तम कृतियाँ हैं। सन्तों और वैष्णवभक्तों के प्रभाव से पद साहित्य की लोकप्रियता बराबर बनी रही। आगरा और जयपुर में विपुल पद साहित्य लिखा गया है। इन रचनाकारों में भैया भगवती दास, द्यानतराय और जगतराम आदि विशेष उल्लेखनीय हैं । अनित्य पच्चीसिका ( भैया भगवती दास ), उपदेश शतक ( द्यानतराय ) और भूधरशतक ( भूधरदास ) की कृतियाँ प्रमाणस्वरूप देखी जा सकती हैं। मरुगुर्जर जैन साहित्य का मध्ययुग विशेषतया १८वीं शती हिन्दी साहित्य का श्रृंगार काल या रीतिकाल था । इस काल के सभी हिन्दी कवि केवल दरवारी और श्रृंगारी नहीं थे बल्कि अनेक कवि रीतिमुक्त थे जो हृदय के विस्तार के लिए विस्तृत भावभूमि चाहते थे। वे प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए हृदय का पूर्ण योग चाहते थे न कि इन्द्रियों और शरीर का । इनके काव्य में अर्थविस्तार. भावगाम्भीर्य, तीव्रानुभूति और कोमल कल्पनाओं का मर्मस्पर्शी उद्गार व्यक्त हुआ है। इस काल के जैन कवियों में भी ये गुण मिलते हैं किन्तु वे उन्मुक्त प्रेम के गायक नहीं बल्कि अध्यात्म, भक्ति और शील के पुरस्कर्ता हैं । ऐसे कवियों में आनंदघन, भगौतीदास, जिनहर्ष आदि विशेष रूप से रेखांकित किए जा सकते हैं। रीतिकालीन हिन्दी कवियों ने भी लोकनीति, उपदेश, प्रेम और अध्यात्म आदि विविध विषयों पर पर्याप्त प्रभावशाली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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