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________________ पप्रचन्द्र २८९ उन्होंने इसका नाम नवतत्व बृहद् बाला० (ग्रन्थाग्रन्थ ३०००) नामक गद्य ग्रंथ बताया है। अन्तक्ष्यिों के आधार पर नाहटा जी का कथन ही सही प्रमाणित हआ है और बाद में श्री देसाई ने भी इसे पद्मचन्द्र के शिष्य की ही रचना मान लिया है। और इसका विवरण-उद्धरण भी दिया है जो आगे दिया जा रहा है। पदमचन्द्र शिष्य---आप जिनचंद्र सूरि के प्रशिष्य और पद्मचंद्र के शिष्य थे। नवतत्व बालावबोध (हिन्दी सं० १७६६ पार्श्व जन्मदिवस, माग कृष्ण १०, गुरुवार, थट्टा) इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है संवत सतरे षट रसें १७६६, श्री पार्वजन्म विचार । तिण दिन ग्रंथ पूरण भयो, स्वात रिषि गुरुवार । खरतर की शाखा भली, धोरी विरुद बखांण, श्री जिनचंद्र सूरीसरु, प्रथम शिष्य परधान ।' इसमें पदमचन्द्र को जिनचंद्र का प्रथम प्रधान शिष्य बताया गया है। पता नहीं कि नवतत्व बाला० के कर्ता के गुरु पद्मचंद्र और जंबू स्वामी रास के कर्ता पद्मचंद्र एक ही व्यक्ति हैं या भिन्न-भिन्न हैं क्योंकि प्रथम पद्मचंद्र जिनचंद्र के शिष्य कहे गये हैं और द्वितीय पद्मचंद्र को पद्मरंग का शिष्य बताया है । पदमचन्द्र सूरि-आप बडतपगच्छीय पार्श्वचंद्र सूरि की परंपरा में जयचन्द्र सूरि के पट्टधर थे। इन्होंने सं० १७२१ पाटण में शालिभद्र चौढालियु (६८ कड़ी) की रचना की जिसका प्रारम्भ इस प्रकार है - सद्गुरु पाय प्रणमी करी रे लाल, गाइस सालिकुमार रे, भोगीसर, पुन्न तणइ वसि पामीयइ रे लाल, मानव नउ अवतार रे भोगीसर । रचनाकाल-सतर सइ इकवीसा समइ रे, पाटण नगर प्रमाण, दिन दिन दोलति बाधती रे, लहीइ कोडि कल्याण । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो, भाग ५, पृ० २५७ । १९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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