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________________ २८८ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पंक्तियों में कवि ने कालिदास को मूर्ख से पंडित और महाकवि बनाने वाली माँ शारदा का वंदन सर्वप्रथम किया है-- सारद पय प्रणमुं सदा, कविजन केरी मात, मूरख यों पंडित करै, कालिदास विख्यात । इसके पश्चात् जिनकुशलपूरि को प्रणाम करके उपरोक्त गुरुपरम्परा बताई गई है। जम्बूरास में शील या चरित्र का माहात्म्य बताया गया है। कोडि छन्न वें कंचण तणी, आठ सुंदरी नारि, जंबू कुंवर ने परिहरी, सह्यो सील अधिकार । रचनाकाल--संवत सतरि से चोदोतरे, काती मास उदारो रे, सुकल पक्ष तेरसि दिने से कीयो चरित सुविचारो रे ।' खरतरगच्छ के आचार्य जिनसिंह की प्रशंसा में अकबर द्वारा उनके सम्मानित किए जाने का उल्लेख है। यह कथा परिशिष्ट पर्व से ली गई है-- परिशिष्ट पर्व थी उधरिउ, अह सहु अधिकारो रे । अन्त-- चरम केवली ओ थयो, जाणे सहु संसारो रे, पदमचंद मुनिवर कहै सयल संघ सुखकारो रे। एक मुनि पद्मचंद को नेमि राजिमती संज्झाय (१५ कड़ी) का कर्ता बताया गया है किन्तु इसका विवरण-उद्धरण उपलब्ध नहीं है। हो सकता है कि जंबरास के कर्ता ही इसके भी रचयिता हों। श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई ने नवतत्त्व बालावबोध (सं. १७१७) का कर्ता भी पद्मचंद्र को ही बताया था । किन्तु श्री अगरचंद नाहटा ने इसे पद्मचंद्र के किसी मिष्य की सं० १७६६ की रचना बताया है। १. मोहन लाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग ४, पृ० २६३ (न०सं०) और भाग २, पृ० १५५-१५७ तथा भाग ३, पृ० १२०३ (न०सं०)। २. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग ५, पृ० ४०१ (न०सं०)। ३. वही, भाग ३, पृ० १६२६ (प्र०सं०) और भाग ४, पृ० २८४ (न०सं०)। ४. अगरचन्द नाहटा--परंपरा पृ० १०७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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