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________________ २६८ मरुगुर्जर हि-दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास में की थी। इसलिए इसका विशेष विवरण उद्धरण देना यहाँ समीचीन नहीं है। इसे प्रकाशित करके जैनमित्र के साथ उपहार में बाटा गया था।' ये दोनों नवल १८वीं विक्रमीय के अन्तिम चरण से १९वीं के पूर्वार्द्ध तक रचनाशील थे इसलिए इनका उल्लेख पूर्व योजनानुसार यहाँ कर दिया गया है। विशेष विवरण उद्धरण यथास्थान दिया जायेगा। नाथू (ब्रह्मचारी) -- ब्रह्मचारी नाथू का साधनास्थल वर्तमान टोंक (राजस्थान) स्थित नगर ग्राम का जैन मन्दिर था। वहाँ के प्रमुख जैन शास्त्र भण्डारों से नाथू की निम्नलिखित रचनायें प्राप्त हुई हैं नेमीश्वर राजमती को ब्याहुलो सं० १७२८; नेमजी की लहरि, जिनगीत, डोरी का गीत, दाई गीत, राग मलार, सोरठ; मारु, धनाश्री के गीत । नाथ मधुर गीतकार थे। इन रचनाओं में नेमीश्वर राजमती को व्याहुलो एक बड़ी रचना है जिसमें तलदी, निकासी, सिन्दूरी, विन्द्राबनी की ढालों में नेमिनाथ राजीमती के विवाह प्रसंग की समस्त मार्मिक कथा का मनोहारी वर्णन किया गया है। उबटन, दूलह का शृगार, बारात की विदाई आदि लोकाचारों में कवि का मन रमा है अतः सम्बन्धित वर्णन मधुर बन गया है । नित्यविजय -तपागच्छीय लावण्य विजय के शिष्य थे। इन्होंने सं० १७३४ में अकादशांग स्थिरीकरण संज्झाय की रचना १२ ढालों में की । इसका प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है -- सरस्वती मात नमीनइं सद्गुरु चरणो नामी शीश । आचारांग अनोपम भाषइ, श्री वर्द्धमान जगदीश रे । गोयम ! सुणि सूधो आचार, जिम पामो भवजल पार रे। १. श्री कामता प्रसाद जैन ---हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास पृ० २२४-२२५ । २. राजस्थान का जैन साहित्य पृ० २१९ और २२५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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