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________________ २६७ नयनशेखर नयनसिंह-ये खरतरगच्छ के पाठक जसशील के शिष्य थे । इन्होंने सं० १७८६ में भर्तृहरि शतक त्रय भाषा की रचना बीकानेर के महाराज आनन्द सिंह के लिए की थी। इसीलिए इसका नाम आनन्द भूषण या आनन्द प्रमोद भी रखा गया था। इसके गद्य का नमूना देखिए - उज्जैणी नगरी के विर्ष राजा भतृहरि जी राज करतु है, ताहि एक समै एक महापुरुष योगीश्वरै एक महागणवंत फल भेंट कीनी। फल की महिमा कही जो खाय सो अजर अमर होई। तब राजा मैं स्वकीय राणी पिंगला कुं भेज्या। तब रानी अत्यन्त कामातुर अन्य पर पुरुष ते रक्त है ताहि पुरुष को फल भेजो अरु महिमा कही ।' नवल--ये बसवा, जयपूर के निवासी थे। इनका सम्भावित रचनाकाल १७९० से १८५५ है। आपने 'दोहा पच्चीसी' के अलावा विपुलसंख्या में गेयपद लिखे हैं। इन्होंने बुधजन, माणिकचन्द और उदयचन्द आदि के समान प्रचुर मात्रा में भक्तिभावपूर्ण पद लिखे जिनकी संख्या डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल के अनुसार हजारों में है। आप दौलतराम कासलीवाल के सम्पर्क में थे और उन्हीं की प्रेरणा से साहित्य की तरफ आकृष्ट हए थे। वधीचन्द मन्दिर जयपुर के गुटका नं० १०८७ और पद संग्रह सं० ४९२ में इनके दो सौ से अधिक पद प्राप्त हुए हैं। इनका एक अन्य ग्रन्थ वर्धमान पुराण भी बताया जाता है। नवलसाह -वस्तुतः वर्द्धमान काव्य के रचयिता अन्य नवल साह थे जो बुन्देलखण्ड के खटोला ग्रामवासी थे। इनके पिता देवराय गोलापूर्व जैनी थे। इनके पूर्वज भेलसी के मूल निवासी थे। नवल साह ने भट्टारक सकलकीर्ति के संस्कृत ग्रन्थ से कथा लेकर वर्तमान काव्य (पुराण) की रचना की थी जिसके सम्बन्ध में पं० पन्नालाल ने लिखा है कि यह कवि बुन्देलखण्ड के श्रेष्ठ कवियों में है। इस ग्रंथ में महाकाव्य के सब लक्षण पाये जाते हैं । इसकी रचना नवल ने सं० १८२५ १. सम्पादक अगरचन्द्र नाहटा --राजस्थान का जैन साहित्य पृ० २७८-७९ । २. डा० गंगाराय गर्ग - "राजस्थानी पद्य साहित्यकार' ७ (१८-२० वीं शती) नामक लेख राजस्थान जैन साहित्य पृ० २२२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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