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नित्यविजय
इसका रचनाकाल इस प्रकार बताया गया हैसंवत सतर चौत्रीसा वरखइ, हरषइ जोड़ी हाथ रे, नित्यविजय बुध पभणइ इणि परि, प्रणमी श्री शांतिनाथ रे । '
गुरु परम्परान्तर्गत विजयसेन सूरि से लेकर विजयदेव, विजयप्रभ, विजयरत्न और लावण्य विजय तक का सादर स्मरण वंदन किया गया है । इसकी अन्तिम पंक्ति में कहा है
जैन धर्म मां निज चित राखो ।
नित्यलाभ -- ये आंचलगच्छ के विद्यासागर सूरि > मेरुलाल > सहजसुन्दर के शिष्य थे । ये इस शती के महत्वपूर्ण कवि थे । इनकी अनेक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। इसकी प्रसिद्ध रचना विद्यासागर सूरि रास (सं० १७९८ पौष ०, सोम, अंजार ) ऐतिहासिक रास संग्रह भाग ३ में प्रकाशित है । सं १७९८ में विद्यासागर का स्वर्गवास होने पर नित्यलाभ ने यह रास लिखा । रचनाकाल देखिये
सं० १७९८ ना वरषे पोष दसम सोमवारे, गच्छपतिना गुण वर्णन कीधा चोमास रही अंजारे रे । ' विद्यासागर सूरि के पिता का नाम कर्मसिंह और माता का नाम
कमला था, यथा
शा कर्मसिंह कुलें त्रिदशपति सारिखो, मात कमला तण, सुजस दीपे ।
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इसमें बताया गया है कि आंचलगच्छीय अमरसागर सूरि के शिष्य श्री विद्यासागर एकबार भुजनगर गए, वहाँ गोवर्द्धन नामक बालक को सं० १७७७ में दीक्षित करके उसका नाम ज्ञानसागर रखा । गोवर्धन का जन्म जामनगर में सं० १७६२ में हुआ था । इनके पिता कल्याण जी और माता का नाम जयवन्ती था । सं० १७९७ में इन्हें १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई जैन गुर्जर कवियों, भाग २ पृ० २९९ ( प्र०सं० ) और भाग ५ पृ० ९ (प्र०सं० )
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२. वही
३. ऐतिहासिक जैन रास संग्रह भाग ३ सम्पादक
श्री विजयधर्मसूरि । ४. नित्यलाभ कृत विद्यासागर सूरिस्तव -- उद्धृत जैन गुर्जर कवियो भाग ५
पू० ६९३ ।
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