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________________ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का वृहद् इतिहास संवत सतरा सैंतीसे, मास असाढ़ नवमी से, महारौठपुर मंझारी, आदिनाथ भवियण तारी।' यह उल्लेख आदिनाथ बेलि के अंतिम पृष्ठ पर है। इसमें प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पंचकल्याणक उत्सवों का वर्णन सरसता के साथ कवि ने किया है। धर्ममंदिर गणि. खरतरगच्छ की जिनचंद्र सूरि शाखा के दयाकुशल आपके गुरु थे। इन्होंने सं० १७१५ से पूर्व दीक्षा ली थी। इन्होंने श्रावक नवलखा वर्द्धमान व भणशाली मिट्ट के लिए सं० १७४०-४१ में मोहविवेकरास और परमात्मप्रकाश चौपई नामक आध्यात्मिक ग्रंथ लिखे । इनकी प्रारम्भिक रचनाएँ गुजरात में लिखी गई जिनकी सूची नाहटाजी के अनुसार इस प्रकार है-- - शंखेश्वर स्तवन सं० १७२३, खंभात, पार्श्वनाथस्तवन सं० १७२४, मूनिपति चौपाई सं० १७२५ पाटण, दयादीपिका चौपाई सं० १७४० मुलताण, मोहविवेकरास (४ खंड :५ ढाल) सं० १७४१, परमात्मप्रकाश चौपाई सं० १७४२, नवकार स्तवन, सुमतिनागिला संबंध चौपाई १७३८ बीकानेर और शंखेश्वर स्तवन (द्वितीय) सं० १७४८ लोद्रवा । मोहनलाल दलीचंद देसाई ने इनकी गुरुपरंपरा में भुवनमेरु और पुण्यरत्न का उल्लेख किया है । इन्हीं पुण्यरत्न के शिष्य दयाकुशल थे। शंखेश्वर पार्श्वनाथ वृहत्स्तवन सं० १७२३ की अंतिम पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं - सांचो साहिब पास जी रे, मत मूको रे मन थी उतार, मया करी महिमानिलो रे ओ विनति अम बारबार । संवत राम बषाणीये कर तुरग भूमि सुजाण । चैत्र नी पूनिम शुभ दिने, मै भेट्या रे जेहनी बहु आंण । वाचनाचारिज जाणीये वर, दयाकुशल उल्लास, मुनि धर्ममंदिर इम कहै, आपेज्यो हो सिवसुख वरवास । ३ १. डा० लालचन्द जैन-जैन व्रजभाषा प्रवन्धों का अध्ययन प० ६९ २. श्री अगर चन्द नाहटा-परंपरा पृ० ९९-१०० । ३. गो नला दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कवियो भाग ४ पृ० ३१९(न०सं०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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