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________________ धर्म मंदिरगणि २५३ मुनिपति चौपई (४ खण्ड ६५ ढाल १२०० कड़ी सं० १७२५, पाटण) आदि श्री संखेसर सुख करन नमतां नवे विधान, . विघन विडारण वीरवर बसुधा बाध्यो बान । इस कृति में कवि ने मुनिपति के चरित्र के माध्यम से धर्म की नाव पर चढ़कर लोभ की दरिया पार करने वाले संतों की प्रशंसा की गई है। कवि कहता है .. अपरंपर ओ लोक में, लोभ लहरि दरियाव, धन ते नर जे ऊतरे, पामी जिन धर्म नाव । रचनाकाल --श्री जिनधरम सूरीसरु, जसु दरसण हीयडो हीसे रे, तसु राजे संबंध संवत सतरे पंचवीसे रे । पाटण माहे परगडो श्री वाडी पास विराजे रे, तस सांनिधि चौपाई रची, चतुरां ने कंठ छाजे रे । जंबूरास ( सं० १७२९, मुलतान, विवरण उद्धरण अप्राप्त) दयादीपिका चौपई का आदि-- चिदानद चित्त में धरी, प्रणमुं पास जिणंद, जग उपगारी जग गुरु, ज्योतिरूप सुख कंद । अन्त--पारसनाथ पसाउले श्री मुलताण नगर मझारो रे, श्रावक जिहां सुखीया बसै अध्यातम ग्यान विचारो रे । गुरु परम्परा संवेग गच्छवा राजीया भट्टारक श्री जिनचंदो रे, भवनमेरु तस शिष्य भला, पुण्यरतन वाचक आणंदो रे, तासु सीस वाचकवरु श्री दयाकुसल कहीजै रे, धरममंदिर गणि इम कहै जिनधरम थी सुख लहीजै रे । रचनाकाल--सतरै सै चालीस वरसै रचीओ धरमध्यान अंग अहोरे, निवृत्तिपणों निश्चल धरें, ग्यांनी नर धनधन तेहो रे । जीवदया जग में बड़ी, सह प्राणी ने सुख दाई रे, जीवदया धरम कीजतां, दिनदिन धर होत बधाई रे ।' १. मोहनलाल दलीचंद देसाई -- जैन गर्जर कपियो भाग ४ पृ० ३२०४३२२ (न० सं०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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