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________________ द्यानतराय इनकी प्रसिद्ध रचना अध्यात्म पंचाशिका या संबोध पंचाशिका में ५० पद्य हैं, इसमें विशुद्ध आत्मा के पास रहकर भी भ्रमाकुल जीव की भटकन का वर्णन करता हुआ कवि एक स्थान पर कहता है जैसे काहू पुरुष के द्रव्य गड्यौ घर मांहि, उदर भर कर भीख ही, व्यौरा जाने नाहि । इनकी अन्य रचनाओं में १०८ नामों की गुणमाला, दस स्थान चौबीसी, छह ढाल आदि का उल्लेख मिलता है ।" पद साहित्य की रचना करने वाले १८वीं शती के भक्तिभावप्रधान कवियों में इनका नाम विशेष रूप से महत्वपूर्ण है । इनके तथा कुछ अन्य प्रमुख कवियों की व्रजभाषा का प्रभाव अन्य जैन कवियों पर भी पड़ा। धनदेव - वृहद् तपागच्छ के राजविजय आपके गुरु थे । आपने 'स्त्री चरित्र रास' की रचना सं० १७१० से कुछ पूर्व ही की थी । यह रचना धनदेव ने भुवनकीर्ति की आज्ञा से की थी । भुवनकीर्ति सं० १७१० में दिवंगत हुए थे और इनके पट्ट पर रत्नकीर्ति सूरि बैठे थे । कवि ने लिखा है भुवनकीर्ति सूरि की आज्ञा थी --- तास आज्ञा लही, बात धनदेव कही । ' इस रचना का अन्य विशेष विवरण या रचना से उद्धरण नहीं दिया गया है । धर्मचंद ( मंडालाचार्य भट्टारक ) - इन्होंने आदिनाथ बेलि की रचना सं० १७३० में महारौठपुर (जोधपुर) में की । रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है १. सम्पादक कस्तूरचन्द कासलीवाल -- राजस्थान के शास्त्रभंडारों की ग्रंथसूची भाग ३ | २ सम्पादक अगरचन्द नाहटा - राजस्थान का जैन साहित्य पृ० २१६-१७ ३. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कवियो भाग ३ पृ० ११८७ ( प्र० सं० ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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