SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૨૪૨ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास काव्यरचना आठ परिच्छेदों में की गई है जिसमें मंदाक्रांता, मालिनी, स्रग्धरा, शार्दूलविक्रीड़ित आदि संस्कृत छंदों के साथ दूहा, चौपाई, सवैया, कवित्त, गीता और मोतीदाम जैसे नवीन प्राचीन छंदों का प्रयोग किया है । इसमें भक्तिरस का उत्कर्ष दिखाई पड़ता है । कवि ने लिखा है - वंदौ केवलराम कौ, रमि जु रह्यो सब मांहि, ऐसी ठौर न देखिए, जहाँ देव वह नांहि । ॐ मन्त्र की स्तुति करता हुआ कवि लिखता है - ॐ सम कोउ मंत्र जु नाही, पंच परमपद याके मांही । सन्त कवियों की भाँति कासलीवाल भी मुंडमुड़ाने और अन्य वाह्याचारों को व्यर्थ बताते हुए कहते हैं मूंड मुंडा कहा, तत्व नहि पावै जौ लौं । मूढ़नि को उपदेश सुन मुक्ति जुनहितौ लौं ' । आपकी प्राप्त रचनायें १९वीं शताब्दी में रचित हैं इसलिए उनका विस्तृत उद्धरण नहीं दिया जा रहा है। इनकी रचनाओं का आधार प्राचीन पुराण एवं जैन शास्त्र है । डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल ने महाकवि दौलतराम कासलीवाल : व्यक्तित्व एवं कृतित्व नामक ग्रंथ में उनका सांगोपांग अध्ययन प्रस्तुत करते हुए उनके आचार्यत्व, काव्यत्व एवं वचनिका प्रतिभा का परिचय दिया है । डॉ० कासलीवाल ने उनकी कृति 'विवेकविलास' को उनकी काव्य प्रतिभा का प्रतीक बताया है । यह मुक्तक रचना है । आपका हिन्दी गद्य प्रांजल एवं संस्कृत गर्भित है । यह अपभ्रंश, प्राकृत तथा देशज शब्दों से मुक्त है । यद्यपि यह दूढाड़ी या व्रजभाषा का गद्य है किन्तु इसमें खड़ी बोली के कुछ प्रयोग भी यत्र तत्र हुए हैं, एक उदाहरण देखिए मालव देस उजैणी नगरी विषै राजा अपराजित राणी विजया त्यां विनयश्री नाम पुत्री हुई । हषिशीर्षपुर के राजा हरिषेण ने परणी । एक दिन दंपति वरदत्त मुनि नैं आहार दान देता हुआ...। * १. प्रेमसागर जैन -- हिन्दी जैन भक्तिकाव्य और कवि पृ० ३५३-२५६ तक २. सं० अगरचन्द नाहटा - राजस्थान का जैन साहित्य पृ० २१६ और २१२ ३. वही पु० २४९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy