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दौलतराम पाटनी
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इसके आसपास जैन साहित्य में दो अन्य दौलतराम नामक लेखकों का उल्लेख है जिसमें एक तो आगरा निवासी पल्लीवाल थे, इनकी रचनाओं का पता नहीं चला है किन्तु दूसरे दौलतराम कासलीवाल बड़े प्रसिद्ध लेखक हो गये हैं । आगे उनका परिचय प्रस्नुत किया जा रहा है।
दौलतराम कासलीवाल-आप ढूढाड़ प्रदेश के वसवा नामक ग्राम के निवासी श्री आनंदराम के पुत्र थे। आपका जन्म आषाढ़ १४ सं० १७४९ में हुआ था। इनकी जाति खंडेलवाल गोत्र कासलीवाल था। बाद में जयपुर में ये बस गए थे। इनके गरु ऋषभदास थे जो आगरा की उस अध्यात्म मंडली से सम्बद्ध थे जिसके संस्थापकों में प्रसिद्ध कविवर बनारसी दास थे । आप जयपुर के महाराज जयसिंह के कॅवर माधवसिंह के मन्त्री थे। सन् १९८६ से १८०८ तक तो कासलीवाल माधवसिंह के साथ उदयपुर में रहे; बाद में उनके राजा होने पर ये भी उनके साथ जयपुर जाकर रहने लगे। राजकाज से जो समय बचता था उसे वे पूजन, अध्ययन एवं ग्रन्थ रचना में लगाते थे। ___ मरुगुर्जर गद्य-पद्य में इनकी प्रायः अठारह रचनाएँ प्राप्त हो चुकी हैं जिनमें आठ पद्य, सात गद्य और तीन टीकापरक रचनायें हैं। काव्य कृतियों में जीवंधर चरित, त्रेपन क्रियाकोष, अध्यात्म बारहखड़ी, विवेकविलास, श्रेणिक चरित (सं० १७८२), श्रीपाल चरित (१८२२), चौबीस दण्डक भाषा, सिद्ध पूजाष्टक और सार चौबीसी हैं। इन्होंने पुण्यास्रव कथाकोष भाषाटीका (१७७७), वसुनंदी कृत श्रावकाचार की टब्बा टीका (सं० १८०८), पद्मपुराण की भाषाटीका (सं० १८२३), आदि पुराण की टीका (१८२४) और हरिवंश पुराण की टीका सिं० १८२९) की। इनकी टीकायें सरस और आकर्षक हैं । कहा जाता है कि पद्मपुराण की टीका पढ़ने के लिए अनेक जैनों ने हिन्दी सीखी और कितने ही अजैन वह टीका पढ़कर जैनधर्म के प्रति श्रद्धावान् बने। इनके परमार्थ प्रकाश के अनुवाद के कारण योगीन्दु कृत परमार्थ प्रकाश की बड़ी ख्याति हुई।
अध्यात्म बारहखड़ी का अपर नाम भक्त्यक्षर मालिका बावनी स्तवन है जो आपकी समर्थ काव्यशक्ति का द्योतक है। यह रचना सं० १७९८ की है। इसमें ५२ अक्षरों में से प्रत्येक अक्षर को लेकर
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