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________________ २४२ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अतः इसे शंकास्पद रचना मानकर इस पर यहाँ विचार स्थगित रखा जा रहा है। देवोदास -ये दिगौड़ा (टीकमगढ़ म०प्र०) निवासी श्री सन्तोष की पत्नी मणि की कुक्षि से उत्पन्न छः भाइयों में सबसे बड़े थे। आजीविका के लिए कपड़े का व्यापार करते थे। छोटे भाई कमल को शादी के लिए सामान खरीदने ललितपुर जाते समय रास्ते में शेर ने मार डाला, इससे इन्हें विरक्ति हुई और साहित्य रचना की तरफ प्रवृत्त हुए। श्री ग०व० दिगम्बर जैन शोध संस्थान, वाराणसी के ग्रन्थागार के एक गुटके से इनकी अड़तीस छोटी-बड़ी रचनाओं का पता चला है । उनकी सूची दी जा रही है -- परमानन्द स्तोत्रभाषा, जीव चतुर्भेदादि बत्तीसी, जिनांतराउली, धरमपचीसी, पंचपदपचीसी, दशधा सम्यक्त्व, पूकारपच्चीसी, वीतरागपच्चीसी, दरसनछत्तीसी, बुद्धिबाउनी, विवेक बत्तीसी, जोगपच्चीसी, द्वादश भावना, उपदेश पच्चीसी, चक्रवर्ति विभूति वर्णन, पदावली, शांति जिनवंदन, जिननामावली, हितोपदेश । ये रचनाएँ छोटी किन्तु गेय और सरस हैं। ये रचनायें १८वीं शती के अन्तिम चरण की बुन्देली भाषा-साहित्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इन रचनाओं का विषय अध्यात्म और प्रमुख भाव भक्ति है। इन्होंने लोक संगीत के साथ अपनी रचनाओं को गेय बनाने के लिए शास्त्रीय संगीत की विविध राग-रागनियों-- यमन, विलावल, जयजयवंती, रामकली, दादरा, धनाश्री आदि- का उपयोग किया है। इन कृतियों में प्रसंगानुकूल प्राकृतिक वर्णन, अलंकार योजना और मानव मनोविज्ञान की भी झलक मिलती है जिससे यत्र-तत्र रचनाओं में सरसता आ गई है। ये कवितायें आत्मरस से परिपूर्ण हैं । 'आतम रस अति मीठो साधो आतमरस अति मीठो ।' इस आत्मरस का स्थायी भाव शम या निर्वेद है विभाव है असार संसार, तप-ध्यान और शास्त्रचिंतन आदि, उद्दीपन है संतवचन । अनुभाव और संचारी आदि के साथ मिलकर शांतरस की स्थान-स्थान पर अच्छी निष्पत्ति ___इनकी रचनायें अब तक अप्रकाशित हैं। इनके संकलन को 'देवीदास विलास' नाम दिया गया है। वहीं से कुछ उदाहरणार्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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