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________________ २३० मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास में नाम देवकुशल दो बार स्पष्ट रूप से उल्लिखित है इसलिए नवीन संस्करण के संपादक ने 'देवी' को छापे की भूल मानकर इसे देवकुशल की रचना माना है।' (श्रीमद् ) देवचद --आप खरतरगच्छ के प्रसिद्ध आचार्य युगप्रधान जिनचंद्र सूरि की परम्परा में दीपचंद के शिष्य थे । आपको गुरु परंपरा में जिनचंद सूरि के पश्चात् पुण्यप्रधान >सुमतिसागर>साधुरंग>राजसागर>ज्ञानधर्म और उनके शिष्य दीपचंद का क्रम है। आप बहुश्रुत विद्वान्, यशस्वी लेखक और तपोनिष्ठ प्रसिद्ध साधु थे । आपकी शिष्य मण्डली भी विस्तृत थी जिसमें मनरूप, विजयचन्द, रायचन्द आदि कई विद्वान् और सुलेखक थे। रायचन्द के आग्रह से किसी कवियण ने सं० १८२५ में एक रास लिखा जिससे देवचन्द के जीवनवृत्त पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। वह रास ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में प्रकाशित है और उसका विवरण तो १९वीं शती में यथास्थान दिया जायेगा किन्तु कुछ महत्वपूर्ण सूचनायें श्री अगरचन्द नाहटा के आधार पर यहाँ दी जा रही है। ___ श्रीमद् देवचन्द जी बीकानेर निवासी (लूणिया ग्राम) शाह तुलसीदास के पुत्र थे। इनकी माता का नाम धनबाई था। इनका जन्म सं० १७४६ में हुआ था। दस वर्ष की अवस्था में ये राजसागर सूरि से दीक्षित हुए। १९ वर्ष की अवस्था में आपने शुभचन्द्र रचित ज्ञानार्णव का मरुगुर्जर में पद्यानुवाद किया। आपने सं० १७६७ में द्रव्यप्रकाश, सं०.१७७९ में आगमसार नामक गद्य ग्रंथ लिखे। बाद में ये गजरात चले गये इसलिए इनकी पिछली रचनाओं पर मरु की अपेक्षा गुजराती का प्रभाव अधिक दिखाई देता है । सं० १८१२ में आपका अहमदाबाद में स्वर्गवास हआ। आपकी समस्त रचनाओं का संग्रह 'श्रीमद् देवचंद' ३ भागों में अध्यात्म प्रसारक मण्डल पादरा द्वारा प्रकाशित किया गया है। आपकी चौबीसी, बीसी, स्नात्रपूजा और स्तवन आदि जैन समाज में पर्याप्त प्रचलित है। आपकी बड़ी दीक्षा जिनचंद्र सरि द्वारा हई और नाम राजविमल रखा गया। आपने अनेक प्रतिष्ठायें की और तमाम लोगों को जैन१. मोहनलाल दलीचंद देसाई-जैन गुर्जर कवियो भाग ३ पृ० १६३७ (प्र०सं०) और भाग ५ पृ० १६२ (न०सं०) । २. अगरचन्द नाहदा-परंपरा पृ० १०३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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