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________________ (श्रीयद्)देवचंद २३१ धर्मानुयायी बनाया । आपकी कुछ प्रमुख रचनाओं का विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है-- ध्यानदीपिका चतुष्पदी ( ५८ ढाल सं० १७६६ वैशाख कृष्ण १३, रविवार, मुलतान) आदि - परम ज्योति प्रणमुं प्रगट सहजानंद सरूप, वसतौ निज परिवार सूं, प्रणमु चेतन भूप। रचनाकाल –संवत लेश्या रस ने वारो १७६६ ज्ञेय पदार्थ विचारोजी, __ अनुपम परमातम पद धारो, माधव मास उदारो जी। यह वही ध्यानदीपिका है जो देवचन्द गणि की प्रथम मरुगुर्जर काव्यकृति है और जो संस्कृत ग्रंथ ज्ञानार्णव का भावानुवाद है-- भविक जीव हित करणी धरणी, पूर्वाचारिज वरणी जी, ग्रंथ ज्ञानार्णव मोहक तरणी भवसमुद्र जल तरणी जी। संस्कृत वाणी पंडित जाणे, सरल जीव सुखदाणी जी, ज्ञाता जन ने हितकर जाणी, भाषा रूप बखाणी जी। यह रचना श्रीमद्देवचंद्र भाग २ में प्रकाशित है। आपकी दूसरी रचना 'द्रव्य प्रकाश भाषा' (स० १७६७ पौष कृष्ण १३, बीकानेर) भी भाग दो में प्रकाशित है। इसके अंत में कलश है जिसमें गुरुजनों का सादर स्मरण है-- इय सयल सुखकर गुण पुरंदर सिद्ध चक्र पदावली, सवि लब्धि विद्या सिद्धि मंदिर, भविक पूजे मनरली। उवझ्यायवर श्री राजसागर, ज्ञान धर्म सुराजता, गुरु दीपचंद सु चरण सेवक, देवचंद सुशोभता ।' इसमें रचना स्थान का उल्लेख करते हुए देवचंद गणि ने लिखा है हिंदु धर्म बीकानयर, कीनी सुख चौमास, तिहां निज ज्ञान मे, कीनो ग्रंथ अभ्यास । अतीत जिन चौबीसी भी श्रीमद्देवचंद्र भाग २ में प्रकाशित है, इसमें २१ तीर्थंकरों का स्तवन प्राप्त है । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो भाग ५ पृ० २४२। (न०सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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