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दुर्गास या दुर्गादास इसमें मरोट नगर का वर्णन है, यथा--
कोट गरोट है बंका, बाजे सुजस का डंका,
भुरज तैतीस हैं जाके, अतिगढ़ विषम हैं बांके । यह रचना उन्होंने दीपचंद के आग्रह पर की थी---
आग्रह दीपचंद उल्लास, कहता यति यूँ दुर्गादास। .
सुणकै दीजियो त्या वास, गजल खूब कीनी रास ।' आपकी दूसरी रचना 'जंबुस्वामी चौढालियु' ( ५ ढाल सं० १७९३ श्रावण शुक्ल ७, सोमवार, बाकरोट) का प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है
पुरुषादांणी परम प्रभु, प्रणमु गोडी पास ।
महावीर महिमा निलो, गणधर गौतमजास । रचनाकाल -संवत सतरै त्रयाण बे सारी, सातम तिथि उजियारी जी।
श्रावण मास भलो सुखकारी, शुभवेला सोमवारी जी। गुरु परंपरा आगे की पंक्तियों में दी गई है
खरतर आचारिज गण धारी युगप्रधान उदारी जी, श्री जिणचंदसूरि शाखा अम्हारी विजयाणंद गुरु गुणकारी। दुर्गदास तस शिष्य सुविचारी, बात कही ओ प्यारी, शिष्य प्रशिष्य जगरूप थानारी, चूप अनुग्रह धारी।
देवकुशल-आपने गद्य रचनायें की हैं । वंदावत्ति (अथवा षडावश्यक सूत्र) बालावबोध अथवा श्रावकानुष्ठान विधि टबार्थ (सं० १७५६) की प्रतिलिपि लेखक ने स्वयं सं० १७६६ से पूर्व ही की थी.
टबार्थेन कृत्वा बुध देवकुशल लि० पं० देवकुशलेन जीर्ण दुर्ग मध्ये सूत्र मध्ये टबार्थ क्रियते । ___ आपकी दूसरी गद्य रचना कल्पसूत्र बालावबोध है जिसे श्री मोहन लाल दलीचंद देसाई ने जैन गुर्जर कवियो के प्रथम संस्करण में देवी कुशल की कृति बताया था किन्तु वंदारुवृत्ति बालावबोध की हस्तप्रत १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई- जैन गुर्जर कवियो भाग ५ पृ० २२९-२३० .
(न०सं०)। २. वही, भाग ३ पृ० १४१२-१३ (प्र०सं०) और भाग ५ पृ. २२९-२३०
(न०सं०)।
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