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________________ २२८ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सं० १६८९ में राजसागर सूरि से खंभात में दीक्षा ली और नाम हर्षसागर पड़ा। इन्हें सं० १६९८ पौष शुक्ल १५ गुरुवार को अहमदाबाद में आचार्य पद्वी दी गई और नाम वृद्धिसागर पड़ा। इन्होंने अपनी मधुर वाणी और उत्तम उपदेशों से अपने शिष्य समुदाय की वृद्धि की । शत्रुञ्जय, शंखेश्वर, तारंगा आदि तीर्थों की यात्रायें की। सं० १७४७ में बीमार पड़े और ६७ वर्ष की आयु भोगकर स्वर्गवास हो गये । कवि ने लिखा है तास सीस मनमोहन पंडित चतुर सौभाग्य बुध इन्द्र रे; तस पद पंकज सेवक मधुकर दीप कहे सुखकंद रे। श्री वृद्धिसागर सूरि पुरंदर जे पाम्या सरगावास रे, गुण गुथीनइ भगतिइं कीधो तेह तणो मे रास रे ।' रास का आदि सकल समहिति पूरणो सिद्धारथ कुल सूर, त्रिसलानंदन नाम थी, ऋद्धि वृद्धि भरपूर । इसमें रचनाकाल नहीं है किन्तु सं० १७:७ रचनाकाल मानने का पुष्ट आधार वृद्धिसागर का निधन संवत् है। वृद्धिसागर का यशोगान करता हुआ कवि दीपसौभाग्य लिखता संजम निरमल पाली नइं, तप जप करी शुभकाज, श्री वृद्धिसागर सूरीश्वर, पाम्या सुरपुर राज ।' दुर्गवास या दुर्गादास-ये खरतरगच्छ की जिनचंद्र सूरि शाखान्तर्गत विजयाणंद के शिष्य थे। इन्होंने काव्यरूपों की दृष्टि से नया प्रयोग किया और लीक से हटकर गजल लिखी। इनकी प्रसिद्ध रचना 'मरोट की गजल' है जिसकी भाषा हिन्दी है और जो सं० १७६५ पौष कृष्ण पञ्चमी को पूर्ण हुई। रचनाकाल गजल में कवि ने स्वयं इन पंक्तियों द्वारा सूचित किया है-- संवत सतरे पेसठे, पोह वदी पांचम, श्री गुरु सरसति सांनिधि, गजलकरी गुणरम्य । १. ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह पृ० ७७-७८ । २. जैन नुर्जर कविओ भाग ५ पृ० ३३.३५ (न०सं०) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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