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________________ दीपसौभाग्य २२७ रोग सोग वियोग नहिं, संकट श्वापद दुष्ट; टले उपद्रव शील थीं, जाइ अठारे कुष्ट । पालो शील अखंड नीत्य जो कउ शिवलील; चित्रसेन पद्मावती, तिम पालो शुभ शील । गुरुपरंपरा - पहले तपागच्छीय राजसागर के पट्टधर बुद्धिसागर का उल्लेख है-- पट्ट प्रभावक उदयो तेहने, मुनीगण हीय. ध्यायो; श्री वृद्धिसागर सूरीश्वर जयवंता, सकल सूरी सवायो रे। इसके पश्चात् कवि ने प्रगुरु और गुरु का वंदन किया है तस गण मांहि पोढा पंडित माणक सौभाग्य बध संतः बहु श्रुतधारी जन मनोहारी, महियल मांहि महंत रे। तस सीस चतुरसौभाग्य बुध, मुझ गुरु ज्ञान दातारी रे, दीप सौभाग्य मुनि कहें तस शिस अ गुरु परम हितकारी रे। रचनाकाल-- संवत निधि गुण मुनी ससी वरषे (१७३९) रुडे भाद्रपद मास रे, असित पक्ष नवमी भृगुवारे, विजय मुहूर्त उल्हास रे । रचना स्थान--बहुजन केरो आग्रह जाणी, नगिनानयर मझार रे, रास रच्यो में गुरु सुपसाइ, श्री सरस्वती देवी अधारे रे। अंतिम पंक्तियाँ--रंगे रास रच्यो रसदाई, कहें मुनि दीप उल्लासे, कविता वक्ता श्रोता जननी, फलज्यो दिन दिन आसें रे।' आपकी दूसरी रजना वृद्धिसागर सूरिरास सं० १७४७ के आस पास लिखी गई। अहमदाबाद के प्रसिद्ध नगरसेठ शांतिदास के गरु राजसागर के पट्टधर वृद्धिसागर का स्वर्गवास सं० १७४७ आसो सुद ३ को हुआ था, उसके कुछ ही बाद यह लिखा गया होगा। यह ऐतिहासिक रास संग्रह भाग ३ में प्रकाशित है। उसके आधार पर वद्धिसागर के संबंध में ज्ञात होता है कि वे बडोदरा राज्य के पाटण नामक नगर से १० मील दूर चाणसमा नामक ग्रामवासी श्रीमालवंशीय भीमजी की भार्या ममता दे की कुक्षि से सं० १६८० चैत्र शुक्ल ११ रविवार को उत्पन्न हुये थे; बचपन का नाम हर जी था। १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कवियो भाग २ पृ० ३६९, भाग ३ पृ० १३३४ (प्र०सं०) भाग ५ पृ० ३३-३५ (न०सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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