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________________ दयातिलक तस परसाद में करी अह कथा परसिधं, दयातिलक कहे जे सुण तिया घरि अविचल रिद्धि । सालिभद्र घना पारइ दीजइ इणपरि दान, परभव जाता ते लहइ अविचल कोडि कल्याण ।' इनकी अन्य दो कृतियों, भवदत्त भविष्यदत्त चौपई और विक्रमादित्य चौपई का भी उल्लेख मिलता है, जिनमें से प्रथम की रचना सं० १७४१ ज्येष्ठ शुक्ल ११ फतेहपुर में पूर्ण हुई, अन्य विवरण और उद्धरण उपलब्ध नहीं हुआ, दूसरी रचना का तो रचनाकाल भी उल्लिखित नहीं है। : दयामाणिक्य --खरतरगच्छीय जिनचंद्र सूरि क्षमासमुद्र>भावकीर्ति>रत्नकुशल के शिष्य थे। इन्होंने रामचन्द्र की मूल कृति पर आधारित 'रामविनोद सारोद्धार' की रचना सं० १७९९ पौष शुक्ल ११ को पूर्ण की। इसकी अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-- मांन तणौ परमांन सारंगधरहुं सारिया, कहो जुं अनुमान, रामविनोद विनोद सुं। यह वैद्यक की रचना है। सारंगधर की आयुर्वेदीय पद्धति पर आधारित है। इसमें गद्य का प्रमुखतया प्रयोग किया गया है, किन्तु गद्य का उद्धरण उपलब्ध नहीं है। रचना के अन्त में लिखा है___इति रामविनोद वैद्यक ग्रन्य सरोद्धार सम्पूर्ण सं० १७९९ शाके १६६४ पौष शुक्ल ११ कृ० ख० म० जिनचंद्र सूरि शिष्य वाचक क्षमासमुद्र शिष्य वाचक भावकीर्ति शिष्य पंडित रत्नकुशल मुनि शिष्य पंडित दयामाणिक्य मुनिना अषा अजनि श्री कास्माबजार मध्ये । .. मोहनलाल दलीचंद देसाई ने जैन गुर्जर कवियो के प्रथम संस्करण में इसे खरतरगच्छीय पद्मरंग के शिष्य रामचन्द्र की रचना बताया था किन्तु नवीन संस्करण में इसको दयामाणिक्य की कृति कहा गया है। रामचन्द्र की मूल रचना का विवरण जैन गुर्जर कवियो के चौथे भाग पृ० १७१ पर स्वतंत्र रूप से दिया गया है। १ मोहनलाल दलीचन्द देसाई--- जैन गुर्जर कवियो भाग ५ पृ० १८-१९ (न० सं०) । २. वही, भाग ३ पृ. १२९९ (प्र० सं०) और भाग ५ पृ० ३६५-३६६ (न०सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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