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________________ २१४ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गुरुपरंपरा--लुंकागच्छ गुरु राजे, गुजराती अधिक दिवाजा, जयराज जी गछनायक आचारिज बहुगुण लायक । तास तणे परभावे मुनि तिलोकसिंह गुणभावे । वदि तेरस शशिवारे, संपूर्ण करी अधिकारा।' दयातिलक-ये खरतरगच्छीय रत्नजय के शिष्य थे। इन्होंने सं० १७३६ में 'धन्नारास' (१७ ढाल) बनाया ।' धन्नारास में कवि ने उसका रचनाकाल इस प्रकार बताया है संवत मुनि गुण रिषि ससी काती नौ चौमास, तिण दिन पूरी मई करी अ चौपइ उल्लास । इस पाठ से रचनाकाल १७३७ सिद्ध होता है, नाहटा जी ने क्यों १७३६ लिखा इसका प्रमाण नहीं मिलता; मोहनलाल दलीचंद देसाई ने स्चनाकाल सं० १७३७, कार्तिक बताया है। इसका प्रारम्भ महावीर और सारदा की वंदना से हुआ है, यथा-- वीर जिनेसर पाय नमी, प्रणमी निजगुरु पाय, हंस गमणी चित्त में धरी, कहिसि कथा चितलाय । इसमें दान की महिमा बताई गई है -- दान सील तप भावना, धरम ना मारग अह, इहां तउ दान बखाणिस्युं, दइणहार सिवगेह । गुर रत्नजय की वंदना करता हुआ कवि कहता है-- सकल विद्या करि सोभता, वाचक पदवी धार, श्री रतनजय मुझ गुरु भला, भविक कमल दिनकार । धन्नारास की अन्तिम पंक्तियों में भी दान देने पर जोर देते हुए दयातिलक लिखते हैं -- १. मोहरलाल दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कवियो भाग २ पृ० ५८१-५८२ (प्र०सं०) और भाग ५ पृ० ३४१ (न०सं०)। २. अगरचन्द नाहटा--परंपरा पृ० १०६ । ३. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो भाग २ पृ० ३५०-३५१ और भाग ३ पृ० १३२५ (प्र०सं०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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