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________________ तेजाम हगणि २१३ रचना में भाषा और छन्द प्रयोग शिथिल है । २४ जिन स्तवन की अंतिम पंक्तियाँ देखें-- संवत सतर चोत्रीसा वर्षे रतनपुरी माहे हरषे रे, मुहता कोठारी ने साह सवाइ संव सकल सुखदाई रे । गणि तेजसिंह जी जिनगुण गाया, सहसमल जी कराया रे । आंतरा नुं स्तवन का आदि ___आदि अनादि अधुना छ, अरिहंत धरु अभिधान। रचनाकाल --संवत सतर पेतीस संवच्छर नांदस में चोमास मे, ___कोटारी ठाकुरसी नी वीनती कीधी सुत उल्लास ।' इन्होंने अनेक स्तवन लिखे हैं जिनमें इनकी भक्ति भावना अभिव्यक्त हुई है परन्तु अभिव्यक्ति अशक्त है । त्रिलोकसिंह--गुजराती लोंकागच्छ के जयराज जी आपके गुरु थे। इन्होंने धर्मदत्त धर्मवती चौपाई (४ खंड ३० ढाल सं० १७८८ आषाढ़ कृष्ण १३ सोमवार) लिखी है जिसकी प्रारंभिक पंक्तियाँ आगे दी जा रही हैं-- प्रथम नमुं चोबीस जिन तारण तरण जिहाज, भविजन समरे भाव सुं सीझे वांछित काज । दान की महिमा बताते हुए कवि ने लिखा है-- दान सील तप भावना चार सरिस अधिकार, पिण इण जाग्या दान नो अति मोटो उपगार । दाने दोलति जिम लही चंद्रधवल महाराय, तिम वलि धर्मदत्त ग्रहपति, ते सुणज्यो चितलाय । रचनाकाल- संवत सतरे अठयासी, आसाढ़ महीने विमासी हो, नगर नगीनो नीको तिहां अविचल राज हिंदू को। _यह रचना बखतसिंह के राज्य में लिखी गई थी। कवि ने कहा है-- बखतसिंघ जी तिहां राजा, बाजे नित नौबत बाजा, १. मोहन लाल दलीवंद देसाई--जैन गुर्जर कवियो भाग २ पृ० ३००-३०२, भाग ३ पृ० १२९१-९२ (प्र०सं०) और भाग ४ पृ० १९०-१९२ (न० सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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