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________________ ज्ञानसागर संवत सतरइं चउसठइं में, आसू सुदि गुरुवार, विजयदशमी दिने अ, अह रच्यो अधिकार ।' इसमें पूर्व कथित गुरु परंपरा का कवि ने उल्लेख किया है और कृतपुन्य या कयवन्ना के चरित्र के माध्यम से दान का महत्व समझाया है। ज्ञानसागर III - उद्योतसागर के शिण्य थे। इन्होंने '२१ प्रकारी पूजा' और 'अष्टप्रकारी पूजा' नामक रचनाएँ की हैं। दोनों रचनायें प्रकाशित हैं। इनका रचनाकाल भ्रामक है। प्रथम रचना का समय सं०१८४३ दिया गया है । इसलिए यहां विवरण नहीं दिया जा रहा है । ___अष्टप्रकारी पूजा का समय सं० १७४३ है, इसमें आठ प्रकार की जिन पूजा का विवरण है, यथा गंगा मागध क्षीर निधि, ओषध मंथित सार, कुसुमे वासित शुचि जलें करो जिन स्नात्र उदार । अर्थात् स्नान से प्रारंभ करके वस्त्र देना, लूण उतारना, आरती मंगलदीप दान आदि का विधि विधान समझाया गया है।' नवीन संस्करण ( जैन गुर्जर कवियो) में इसकी चर्चा नहीं है अतः शायद यह कवि १९ वीं शताब्दी का है। ज्ञानसागर IV----महोपाध्याय धर्मसागर संतानीय हर्षसागर के प्रशिष्य थे। इन्होंने जिन तिलकसूरि कृत धन्यकुमार चरित अथवा दानकल्पद्रुम पर बालावबोध लिखा है जिसकी गद्य भाषा का नमूना नहीं मिला है। ज्ञानसागर V- आचलगच्छीय कल्याणसागर 7 अमरसागर> विद्यासागर सूरि के शिष्य थे। जब ये अपने गुरु विद्यासागर सूरि के १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जन गुर्जर कबियो भाग ५ पृ० १९२-१९४ (न० सं०)। २. वही भाग ३ पृ० १३३२-३३ (प्र०सं०)। ३. वही भाग २ पृ० ३६६ (प्र०सं०)। ४. वही भाग ३ पृ० १६४८ प्र०सं० और भाग ५ पृ० ३७४ (न०सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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