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________________ १९८ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास हैं। दिगम्बर मौलिक रचना से बचते हैं और सर्वत्र हिन्दी का प्रयोग पहले से करते आ रहे हैं इसलिए इनकी रचनाओं में हिन्दी का स्वच्छ रूप प्रयुक्त है, यथा - श्रावण द्वादशी कथा की यह पंक्ति - "नवीन चार प्रतिमा कीजिये, कलश छत्र घंटा दीजिये।" इत्यादि ज्ञानसागर II - खरतरगच्छीय जिनरत्नसूरि के प्रशिष्य और क्षमालाभ के शिष्य थे। इन्होंने नलदमयन्ती चौपइ सं० १७५८ में और कयवन्ना चौपइ सं० १७५४ में लिखी।' _ नलदमयंती चौपइ या चरित्र (सं.१७५८ ज्येष्ठ शुक्ल १० बुधवार) आदि प्रणमुं पारसनाथ ना चरण कमल सुखकार । सारद ने सद्गुरु वली बुद्धि सिद्धि दातार । इसमें सती शिरोमणि दमयंती की कथा है। गुरु परंपरा इस प्रकार दी गई है श्री खरतरगछ नो धणी अ, श्री जिनराज सूरिंद, पाट महिमा घणो अ, श्री जिनरतन सुरिंद। तासु सीस पाठक जयउ अ, श्री क्षमालाभ गुणखांनि, प्रतपे महीयले अे दिन दिन चढते वान । तासु शिष्य वाचक कहे अ, ज्ञानसागर सुपवित्त, कारण निज आतमा अ, सतीय तणो सुचरित्त । इसको रमणलाल शाह ने संपादित कर 'बे लघु रास कृतियों' में प्रकाशित किया है। कयवन्ना चौपई ( ३३ ढाल सं० १७६४ विजयादसमी गुरुवार ) श्री नाहटा ने रचनाकाल १७५४ बताया था जो ठीक नहीं लगता क्योंकि कवि ने स्वयं रचनाकाल इस प्रकार बताया है-- १. अगरचन्द नाहटा---परंपरा पु० १०८ । २. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियों भाग ३ पृ० १४०२-४ (प्र० सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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