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________________ १८२ " मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास एक अन्य रचना पद्मनंदि पंचविंशतिका भाषा (सं० १७२४) इसी नाम के ग्रंथ का भाषानुवाद है।' इन अनुवादों और मौलिक ग्रंथों के अलावा जोधराज जी ने बड़ी संख्या में विनय, भक्ति से युक्त सरस पद लिखे हैं । आपका एक पद नमूने के रूप में आगे लिखा जा रहा है --- जै जै एक अनेक सरूप, जै जै धर्म प्रकासक रूप । वरन रहित रस सहित सुभाव, जै जै सुध आतम दरसाव । जै जै देव जगत गरु राज, जै जै देव सकल सवाँरन काज। जै जै केवल ज्ञान सरूप, मोह तिमिर खंडन रविरूप। जब लग जीव भ्रमौ संसार, पाय सरूप लयो अधिकार । जब लग मन बच काय करेय,जिनवर भगति हिय न धरेय । जोशीराय मथेन -आपकी चर्चा जोगीदास मथेण के सम्बन्ध में की जा चुकी है। आप बीकानेर के महाराज अनूपसिंह द्वारा सम्मानित कवि थे। आपने सुजाणसिंह रासो सं० १७६७-६९ के मध्य लिखा जिसमें महाराज सुजानसिंह द्वारा वरसलगढ़ पर विजय का वर्णन है। 'वरदा' पत्रिका के जून सन् १९७३ के अंक में यह प्रकाशित है।' ज्ञानकोति-विनयदेवसूरि>विनयकीतिसूरि>विजयकीर्ति सूरि> के शिष्य थे। इन्होंने गुरुरास ( १९ ढाल ) की रचना सं० १७३७ माघ शुक्ल ६ को खंभात में की। इस रास के प्रारंभ की पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं-- आदिनाथ आदि नमुं आप अविचल शर्म, नीति पंथ प्रगटाइ के, वारिउ युगलाधर्म । गुरुपरंपरा के अन्तर्गत ब्रह्म ऋषि द्वारा प्रवर्तित ब्रह्मामती गच्छ के उपरोक्त आचार्यों का बंदन किया गया है, इसके संदर्भ में कवि ने लिखा है - विजयकीरति सूरि वंदिइ गुणगिरिउ गुरुराज रे, नामें जेहने नवनिधि थाइं, सीझे सधलाकाज रे । १. अगरचन्द नाहटा--राजस्थान का जैन साहित्य-पृ० २१७-२१८ । २. डा० प्रेमसागर जैत-हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि पृ० २४७-२५१ ३. संपादक अगरचन्द नाहटा-राजस्थान का जैन साहित्य पृ० २७८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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