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________________ जोधराज गोधीका १८१ इसमें चौपाई छंद की प्रधानता है। काव्यत्व सामान्य कोटि का है।' सम्यक्त्व कौमुदी (सं० १७२४ फाल्गुन कृष्ण १३, शुक्रवार) यह इसी नाम की मूल संस्कृत रचना का भाषानुवाद है । यह अनुवाद कवि ने अपने मामा कल्याण के लिए की थी। इसका प्रारंभ देखिए परम पुरुष आनंदमय चेतनरूप सुजान; नमूं शुद्ध परमात्मा जग परकासक भान । परम ज्योति आनंदमय सूमति होई आनंद, नाभिराज सुत आदि जिन बंदौ पूरणचंद्र । अंत--वंदौ सिव अवगाहना अर वंदौ सिव पंथ; ___ असहदेव बंदौ विमल, वंदौ गुरु निरग्रन्थ । धर्म सरोवर (सं० १७२४ आषाढ़ सुदी पूर्णिमा) आपकी मौलिक कृति है । इसमें विविध सुभाषितों द्वारा जैनधर्म का निरूपण हुआ है। इसमें तीर्थंकरों की स्तुतियां हैं, यथा-- शीतलनाथ भजो परमेश्वर अमृत मूरति जोति वरी। भोग संजोग सुत्याग सबै, सुखदायक संजम लाभकरी ।' आपके 'कथाकोश' का उल्लेख नाथूराम प्रेमी और कामताप्रसाद जैन ने किया है। ___ ज्ञान समुद्र (सं० १७२२ चैत्र शुक्ल १०) की लेखक द्वारा लिखित प्रति प्राप्त है। प्रवचन सार (सं० १७२६) आचार्य कुन्दकुंद के प्रवचनसार का भाषानुवाद है। चित्रबन्ध दोहा की सं० १७२६ की प्रति प्राप्त है अतः रचना कुछ पहले की होगी। जैन लेखकों में चित्रबन्ध काव्य की परंपरा पुरानी है किन्तु ऐसी रचनायें कम उपलब्ध हैं, अतः इसका महत्व है। आपकी १. डा. लालच-4 जैत-जैन कवियों के ब्रजभाषा प्रवन्धकाव्यकाव्यों का अध्ययन पू० ९०-९१ । २. डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल - राजस्थान के जैन शास्त्रभंडारों की ग्रंथ सूची भाग ४ पृ० २५२ । ३. प्रेमसागर जैन-हिन्दी जैन मक्तिक और कवि प.० २४७-२५१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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