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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास उल्लेख किया है जो एक अच्छे कवि थे और बीकानेर के महाराज अनूपसिंह द्वारा सम्मानित थे।
बीकानेर वासी विशद धर्मकथा जिह धाम स्वेतांबर लेखक सरस जोशी जिनको नाम । अधिपति भूप अनूप जिहि, तिनसों करि सुभभाय दीय दुसालो करि करै-कह्योजु जोशीराय । जिनिवह जोशीराय सुत, जानहु जोगीदास; संस्कृत भाषा भनि सुनत भो भारती प्रकाश । जहाँ महाराज सुजान जय, बरसलपुर लिय-आन,
छन्द प्रबंध कवित्त करि, रासो कह्यौ बखान । इससे स्पष्ट होता है कि जैन कवियों ने केवल धर्म दर्शन या अध्यात्म और सांप्रदायिक रचनायें ही नहीं की अपितु जनोपयोगी विषयो जैसे वैद्यक, ज्योतिष, भाषा, छंद, अलंकार आदि नाना विषयों पर भी पद्यबद्ध उत्तम रचनायें की हैं।' जोशीराय मथेण की चर्चा आगे यथास्थान की जा रही है।
जोधराज गोधीका --आपके पिता अमरराज या अमरसिंह सांगानेर (राजस्यान) के रहने वाले थे। इनके विद्यागुरु हरिनाम मिश्र छंद, व्याकरण और ज्योतिष आदि कई विषयों के पारंगत विद्वान् थे। उस समय सांगानेर के शासक का नाम भी अमरसिंह था। कवि ने अपने पिता, राजा और गुरु की प्रशस्ति की है। इन्होंने कई सुंदर रचनायें की हैं जिनका परिचय आगे दिया जा रहा है। _प्रीतंकर चरित्र (सं० १७२१) यह रचना ब्रह्म नेमिदत्त कृत प्रीतंकर चरित पर आधारित हैं । इसमें भगवान जिनेन्द्र के परमभक्त महाराज प्रीतंकर का चरित्र चित्रित है। कवि ने लिखा है--
मूलग्रंथ करता भए नेमिदत्त ब्रह्मचार;
तसु अनुसार सुजोध कवि करी चौपईसार । १. सम्पादक अगरचन्द नाहटा--राजस्थान का जैन साहित्य पृ० २७८ । २. सम्पादक डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल और अनूपचन्न-राजस्थान के
जैन शास्त्रभंडारों की ग्रंथसूची भाग ४ प० १८३ ।
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