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________________ १७४ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तवन (५ कड़ी सं० १७८१ चैत्र शुक्ल १५ डुंगरपुर) ऋषभ स्तव (५ कड़ी सं० १७८० फाल्गुन शुक्ल ९) का आदि - पूजो ऋषभ जिणेसर भाव धरि सुविशाल, पूजो। अन्त-संवत् १७ असीया वरसे सुदि फागण नेमि रसाल, पूजो। स्तवनों में सीमंधर स्तव, अनंत जिन स्तव, शांतिनाथ चक्रवर्ती रिद्धि वर्णन स्तवन और पर्युषण स्तुति विशेष उल्लेखनीय हैं । चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तव की प्रथम पंक्ति है-- गिरिपुर नगरे सोहे हो, मनमोहन भवियण ना सदा श्री चिंतामणि पास । अंत-संघ सवाई गिरिपुर नो हो प्रभु पास पसाई, दीपतो नित प्रणमे प्रभु पास । सतर सै अकयासीये हो सुद चैत्री पुनम ने दिन जिणेन्द्र सागर गुण गाय । अनंतजिन स्तव की अंतिम कड़ी इस प्रकार हैअह नाटिक जिणें दीठु रे होस्य धन धन धन्य ते गृहपति; जसवंत सीस जैनेन्द्र ते नाटिक, जेवण उच्छक छे अति ९ प्रभु । पर्युषण स्तुति का आदि वरस दिवस मांहे सारज मास,तिण मांहे बली भाद्रव मास । आठ दिवस अती खास, परब पजुसण करिये उल्लास । लेखक ने गुरुपरंपरा का उल्लेख इस पंक्ति में किया हैश्री विजयरत्न सूरी गणधार, जसवंतसागर सुगुरु उदार, जिनेन्द्रसागर जयकार । इन स्तवनों में शांतिनाथ स्तवन महत्वपूर्ण हैं। इसे शामजी मास्तर ने 'सज्जन सन्मित्र' में पृ० ५८१-५८४ पर प्रकाशित किया है । इसकी अंतिम पंक्तियाँ उद्धत की जा रही हैं--- १. अगरचन्द नाहहा--परंपरा पृ० ११२ । २. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो भाग ५ पृ० ३११-३१३ (न०सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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