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________________ जिनहर्ष १७३ गीत आदि ये सभी कृतियां प्रकाशित हैं। आपने अपनी रचनाओं में लोकगीतों और प्रचलित देसियों का सुंदर उपयोग किया है। ये जनता के कवि थे और इनकी वाणी में लोकहित के भाव लोकवाणी रूप में व्यक्त हुए हैं । आपकी सभी रचनाओं का विवरण उद्धरण देने के लिए वृहदाकार ग्रंथ की अपेक्षा है । ___ जैसा कह चुके हैं आपने केवल पद्यबद्ध रचनायें ही नहीं की हैं बल्कि आप कुशल गद्य लेखक भी हैं। आपकी कुछ गद्य कृतियों का भी संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है दीपालिका कल्प बालावबोध सं० १७६३ सोम सुंदर सूरि के शिष्य जिनसुन्दर सूरि की रचना दीपालिका कल्प पर वार्तिक (गद्य) है। इसकी गद्य भाषा का नमूना नहीं मिला। दूसरी गद्य रचना है (स्नात्र) पूजा पंचासिका बालावबोध---यह मूलतः शुभशील गणि कृत पूजा विधि पर आधारित कृति पर बालावबोध है।' इस विवरण से स्पष्ट है कि जिनहर्ष अपने समय के प्रमुख साहित्यकार ये। इनके रचनाओं की संख्या गुणवत्ता और विस्तार को देखते हुए इन्हें 'कविवर' कहना समीचीन है। जिनेन्द्रसागर-आप तपागच्छ के आचार्य जसवन्तसागर के शिष्य थे। आपने गच्छ के आचार्य विजयक्षमा सूरि के सम्बन्ध में एक 'शलोको' लिखा है जिससे ज्ञात होता है कि उनका जन्म मारवाड़ के पाली निवासी चतुरो जी की पत्नी चतुरंग दे की कुक्षि से हुआ था। उनका जन्म नाम खिमसी था। विजयरत्न सूरि ने उन्हें दीक्षित किया और नाम विजयक्षमा रखा। सं० १७७३ भाद्र शुक्ल अष्टमी को उन्हें आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया। उस समय मारवाड़ के शासक अजित सिंह थे। इसका आरंभ निम्न पंक्तियों से हुआ है - सरसति सांमिणी पाओ जी लागुं, अमिय संमाणि वाणी जी मागुं विजयक्षमा सूरि नो कहुं सलोको, अक मन थइ सांभलो लोको। इन्होंने कई स्तवन, चौबीसी और द ढक पच्चीसी आदि रचनायें की हैं जिनका संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है। १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई -- जैन गुर्जर कवियो भाग ४ पृ० ८२-१४२ (न० सं०)। २. सम्पादक अगरचन्द नाहटा--जिनहर्ष ग्रंथावली । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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