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________________ जिनेन्द्रसागर १७५ तपगच्छनायक वंदी अरे, विजयक्षमा सूरिराय । कांतिसागर पंडितवरु रे, तास तणे सुपसाय । तास तणे सुपसाय कहाया, समर्थ शांति जिनेश्वरध्याया। जसवंतसागर पंडितराया, शिष्य जिनेश्वरसागर गुणगाया।' ढूँढक पचीसी (२५ कड़ी, नाडुल) का आदि श्री श्रुतदेवी प्रणमी कहस्यं जिनप्रतिमा अधिकार रे; नवि माने तस वदन चपेटा, माने तस सिणगार रे। श्री जिन प्रतिमा स्यूँ नही रंग तेहनो क दिन कीजे संग। अंत ढुंढण पचवीसी में गाई, नगर नाडुल मझारि रे, जसवंत सीस जिनेन्द्र पयंपे, हितकारण अधिकार रे । मौन अकादशी स्तव ( ३१ कड़ी) 'जिनेन्द्र भक्ति प्रकाश' में प्रकाशित है। सिद्धचक्र स्तवन और अष्टापद स्तवन जैनप्रकाश में प्रकाशित है। इन्होंने अधिकतर स्तवन ही लिखे हैं और रचनायें भक्तिप्रधान किन्तु सामान्य कोटि की हैं। जिनेश्वरदास--इन्होंने सं० १७६१ में 'नेमिचंद्रिका' की रचना की, जिसके नाम से ही प्रकट है कि यह नेमिराजुल पर आधारित है। जीतविजय --तपागच्छीय हीरविजयसूरि>बरसिंध ऋषि>जीवविजय आपके गुरु थे। आपने हरिबलरास की रचना सं० १७२६ पौष शुक्ल २, शनिवार को पूर्ण की जिसमें हरिबल ऋषि की जीवदया का वर्णन किया गया है। ये धीवर जाति के थे किन्तु अपनी जीवदया के व्रतपालन से ऋषि कहे गये हरिबल धीवर जाति तो, गुरुमुषि जिणव्रत लीध, दया प्रभावइ देवता, सानिध सधले कीध । रचनाकाल-भाषा भुज संयम वर्षे, संवत संख्यादी धीरे; ___ पोष शशि बीजा शनिवारे, हरिबल चोपई कीधी रे | १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कविओ भाग ५ पृ० ३१३(न०सं०) २. वही भाग २ पृ० ५५५-५५७, भाग ३ पृ० १४४५-४६ (प्र०सं०)। ३. सुची-उत्तमचंद कोठारी (पार्श्वनाथ शोधपीठ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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