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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास आपकी प्रथम रचना नेमिनाथ फागु सं० १६९७ में और अन्तिम रचना 'सर्वार्थसिद्धि मणिमाला' (वैराग्य शतक की वृत्ति) सं० १७४० में रची गई है इस बीच आपने वसुदेव चौपाई, ऋषिदत्ता चौपई (जिसे क्षमासुंदर ने पूर्ण की थी), उत्तमकुमार चौपई (नवरस सागर सं० १७३२ काती वदि १२ बुधवार), रुकमणि चरित्र, हरिबल चौपाई (सं० १७०६ ज्येष्ठ वदि, पाहड़पुर) गुणसुन्दर चौपाई, इलाची कुमार चौपाई १७५१ आसोज सुदि १०, वीरोतरा ग्राम शत्रुञ्जयरास गाथा ६३ सं० १७२३ वैशाख सुदि १०, प्रवचन रचनावेलि, तत्वप्रबोधन नाममाला सं० १७३० कार्तिक शुक्ल ५, कल्पसूत्र बालावबोध, कालिकाचार्य कथा, कल्पांतर वाच्य, सतरहभेदी पूजा सं० १७१८ सूरत, गाजीपुर में, राठौड़ बंशावलि, मनोरथमाला बावनी, ईश्वरशिक्षा गाथा ५४, शत्रुजय गिरनार मंडण स्तवन ५९ गाथा सं० १७२४ आसाढ़, श्री सीमंधर स्तवन गाथा ५९, आतमकरणी संवाद गाथा १७७-४२ (रस रचना चतुष्पदिका सं० १७११ मुलतान, गजल गाथा, साधुवंदना, शत्रुजय स्तवन गाथा ४८ सं० १७१९, पार्श्वनाथ रास सं० १७१३ गाजीपुर, गुणसागर प्रबोधचन्द्र शुद्ध प्रकाश (अपूर्ण), रत्नसेन पद्मावती (अपूर्ण)। अन्य कई स्तवन, फाग, छत्तीसी आदि जैसलमेर शास्त्र भण्डार में प्राप्त है।' अगरचन्द नाहटा ने सर्वार्थ सिद्धि गणिमाला को अन्तिम रचना बताया है किन्तु उन्होंने रचनाओं का जो विवरण दिया है उसमें इलाची कुमार चौपाई का रचनाकाल सर्वार्थसिद्धि के बाद सं० १७५१ बताया गया है। लगता है कि कुछ अशुद्धि किसी स्तर पर हो गई है । पट्टावली में लिखा है कि जिनसमुद्र सूरि ने सवा लाख श्लोक प्रमाण नवीन ग्रन्थ रचना की थी। आपके रचित फारसी भाषा के भी कई स्तवन प्राप्त हैं । आपकी कुछ रचनाओं का विवरण और उद्धरण उदाहरणार्थ आगे दिया जा रहा है। ___ शत्रुजय गिरनार मंडण स्तवन (गाथा ५९ ढाल ३, सं० १७२४ शुचिमास, सोमवार) आदि--श्री सेज गिरनार बे मंडण दीनदयाल,
श्री आदीश्वर नेमिनो तवण सुणो सुरसाल । अन्त -इम सिद्धगिरि गिरनार भूषण विगत दूषण जिनवरी,
नाभेय नाम सुधेय श्री शैवेय दुख आपद हरो। १. अगरचन्द नाहटा--परंपरा पृ० ९४-९५ ।
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