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________________ जिनविजय १५७ इसमें दान के दृष्टान्त स्वरूप धनाशालिभद्र का चरित्र चित्रित किया गया है। धन्य शाह धर्माग्रणी पद पद मंगल माल; शालिभद्र पिण दान थी सुख पाम्यो श्री कार । इसके उपरांत विस्तारपूर्वक गुरुपरम्परा का वर्णन किया गया है और अन्त में लिखा है-- च्यार उल्लासे अधिक विलासे दान कल्पद्रुम गायो, बुध जिनविजय कहें विस्तारियो, शत शाषाई सुछायो रे । यह रचना भीमसिंह माणक और शाह लखमसी जैसिंह भाई द्वारा प्रकाशित की गई है। आपने श्रीपालचरित में धन्ना शालिभद्र रास में अपने समकालीन मेदपाट के राजा जगतसिंह का उल्लेख किया है और बताया है कि वे विजयसिंह सूरि का सम्मान करते थे, यथा मेदपाटपति राणा जगतसिंह प्रतिबोधी जश लीधो, पल आखेटक नियम करावी, श्रावक सम ते कीधो रे । इन पंक्तियों के ठीक ऊपर विजयसिंह की चर्चा है-- तस पट्ट श्री विजयसिंह गुरु भत्ति जन कैरव चंदा, गुण मणि रोहण भूधर ऊपम, संघ सकल सुखकंदा।' इसी प्रकार का उल्लेख श्रीपाल चरित्र में भी किया गया है। जिनसमुद्रसूरि (महिमसमुद्र) आपका जन्म श्रीमाल जातीय हरराज की भार्या लखमा दे की कुक्षि से हुआ था। आपका दीक्षा नाम महिमसमुद्र था । सं० १७१२ में बेगड़गच्छ के आचार्य जिनचन्द सूरि के स्वर्गवासी होने पर आपको उनके पट्ट पर अभिषिक्त किया गया था। सं. १७४१ कार्तिक शुक्ल १५ को वर्द्धनपुर में आपका स्वर्गवास हुआ। आप १७वीं शती के अन्तिम दशक से १८वीं शती के चौथे दशक तक रचनायें करते रहे। कहा जाता है कि आपने जीवन के तीन दशक साधुचर्या में व्यतीत किए अर्थात् दीक्षा के समय (सं० १६८२) आप ८ या १० वर्ष के बालक रहे होंगे। अतः अनुमान होता है कि आपका जन्म सं० १६७०-७२ में हुआ होगा। १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो भाग २ पृ० ५६७-७३; भाग ३ पृ० १४५४ (प्र०सं०) और भाग ५ पृ० ३५०-३५४ (न०सं०) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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