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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास (४१ ढाल सं० १७९१ आसो सुदी १० गुरुवार, नवलखवंदर) का आदि निम्नांकित है--
स्वस्ति श्री शोभा सुमतिदायक वीर जिणंद,
कामित पूरण कामघट प्रणमु परमाणंद । अन्त-- श्रीपाल चरित्र बखाण्यो, सद्गुरु ने सुपसाये रे;
नवलष बंदर में मनरंगे नवलष पास पसाई रे । रचनाकाल--सत्तर से अकाणुं वरसे, आसो शुदी तिथि प्यारी रे।
विजयदशमी गुरुवार अनोपम रचना कीधी सारी रे । श्रीपाल चरित्र का दृष्टान्त देकर सिद्धचक्र की आराधना का महत्व समझाया गया है--
तस सतीर्थ्य पण्डित जिनविजये, रास रच्यो हित आंणी रे, भाव धरी सिद्धचक्र आराधो, लाभ अनंतो जांणी रे । इससे गुरुपरम्परान्तर्गत गजविजय, हितविजय और भाणविजय की अभ्यर्थना की गई है।
नेमिनाथ शलोको (७२ कड़ी सं० १७९८ दीपावली प्रेमापुर, अहमदाबाद) की प्रारम्भिक पंक्तियाँ आगे उद्धृत की जा रही हैं--
वाणी वरसति सरसति माता, कविजन त्राता कीरतिदाता । इक्ष्वाकुवंस जिनवर बावीस, मुनि सुब्रत नेमि दोय हरिवंश । वावीसमो जिनवर नेमिकुमार, बाल ब्रह्मचारी राजुल नारि।
परणाया नही पिण प्रीतडी पाली, कहिस्युं सलोको सूत्र संभाली। रचनाकाल--सतर अठाणं दीवाली टाण,
___ सहर ने पासे प्रेमापुर जाणु। संभव सुख लहरी कुशल कल्याणी,
मोती मां ऊजल कवि जिनवाणी ।' धनाशालिभद्ररास--(४ खण्ड ८५ ढाल २२५० कड़ी सं० १७९९ श्रावण शुक्ल १० गुरुवार सूरत) का आदि देखिए--
अँद्र श्रेणिनत क्रम कमल, स्वस्ति श्री गुणधाम, वीर धीर जिनपति प्रते, प्रेमें करूं प्रणाम । वसुधा में विद्या विपुल वरदाता नित्यमेव,
समरु चित चोपे करी ते प्रतिदिन श्रुतमेव । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई -जैन गुर्जर कवियो भाग ५ पृ० ३५०-५१
(न० सं०)।
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