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________________ १५६ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास (४१ ढाल सं० १७९१ आसो सुदी १० गुरुवार, नवलखवंदर) का आदि निम्नांकित है-- स्वस्ति श्री शोभा सुमतिदायक वीर जिणंद, कामित पूरण कामघट प्रणमु परमाणंद । अन्त-- श्रीपाल चरित्र बखाण्यो, सद्गुरु ने सुपसाये रे; नवलष बंदर में मनरंगे नवलष पास पसाई रे । रचनाकाल--सत्तर से अकाणुं वरसे, आसो शुदी तिथि प्यारी रे। विजयदशमी गुरुवार अनोपम रचना कीधी सारी रे । श्रीपाल चरित्र का दृष्टान्त देकर सिद्धचक्र की आराधना का महत्व समझाया गया है-- तस सतीर्थ्य पण्डित जिनविजये, रास रच्यो हित आंणी रे, भाव धरी सिद्धचक्र आराधो, लाभ अनंतो जांणी रे । इससे गुरुपरम्परान्तर्गत गजविजय, हितविजय और भाणविजय की अभ्यर्थना की गई है। नेमिनाथ शलोको (७२ कड़ी सं० १७९८ दीपावली प्रेमापुर, अहमदाबाद) की प्रारम्भिक पंक्तियाँ आगे उद्धृत की जा रही हैं-- वाणी वरसति सरसति माता, कविजन त्राता कीरतिदाता । इक्ष्वाकुवंस जिनवर बावीस, मुनि सुब्रत नेमि दोय हरिवंश । वावीसमो जिनवर नेमिकुमार, बाल ब्रह्मचारी राजुल नारि। परणाया नही पिण प्रीतडी पाली, कहिस्युं सलोको सूत्र संभाली। रचनाकाल--सतर अठाणं दीवाली टाण, ___ सहर ने पासे प्रेमापुर जाणु। संभव सुख लहरी कुशल कल्याणी, मोती मां ऊजल कवि जिनवाणी ।' धनाशालिभद्ररास--(४ खण्ड ८५ ढाल २२५० कड़ी सं० १७९९ श्रावण शुक्ल १० गुरुवार सूरत) का आदि देखिए-- अँद्र श्रेणिनत क्रम कमल, स्वस्ति श्री गुणधाम, वीर धीर जिनपति प्रते, प्रेमें करूं प्रणाम । वसुधा में विद्या विपुल वरदाता नित्यमेव, समरु चित चोपे करी ते प्रतिदिन श्रुतमेव । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई -जैन गुर्जर कवियो भाग ५ पृ० ३५०-५१ (न० सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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