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________________ जिनसमु द्रसूरि (महिमसमुद्र) १५९ युग नयन भोजन प्रतिम १७२४ वछर मास शुचि शशि दिनयरो। जिनचंद वेगड़ सीस श्री जिनसमुद्र सूरि सुहंकरो।' तत्त्व प्रबोध नाम माला (सं० १७३० कार्तिक शुक्ल ५, गुरुवार) रचनाकाल - संवत सतरह से वरस, वीते ऊपर त्रीस; __कार्तिक सित पंचमि गुरो, ग्रन्थ रच्यो सुजगीस । नेमिनाथ बारमासी (१५ कड़ी) आदि -. श्री यदुपति तोरण आया, पसु देख दया मन लाया। प्रभु श्री गिरनारि सिधाया, राजल रांणी न विराया, हो लाल । लाल लाल इम करती। अन्त--- सखी री नेमि राजुल गिरवरि मिलीयां, दुख दोहग दूरइं टलीया। जिणचन्द परम सुख मिलीया, श्री जिनसमुद्र सूरि मनोरथ फलीया, हो लाल ।' सीमंधर स्तवन (गाथा ५९) तथा अन्य कई छोटी रचनाओं के विवरण प्राप्त हैं किन्तु आपके अनेक रास तथा चौपाइयों के खण्डित अंश ही प्राप्त हैं जिनके पूरी प्रतियों के अन्वेषण न होने के कारण सबका विवरण देना तथा उनके आधार पर आपके रचनासामर्थ्य का अनुमान लगाना सम्भव नहीं है। फिर भी रचनाओं की विस्तृत सूची देखकर यह निश्चय होता है कि आपकी रचना क्षमता असाधारण थी। जिनसुखसूरि--आप खरतरगच्छीय जिनरत्न के प्रशिष्य और जिनचन्द्र सरि के पट्टधर शिष्य थे। आपका जन्म सं० १७३९ मागसर शक्ल १५ को हआ था। आपके पिता का नाम रूपसी और माता का नाम सुरूपा था । आपकी दीक्षा सं० १७५१ माह शुक्ल ५ पुण्यपालसर में हुई थी और आपका दीक्षा नाम सुखकीर्ति था। आपको सूरिपद सं० १७६२ में प्राप्त हुआ। सं० १७८० जेठ वदी १०, रिणीनगर में आपका स्वर्गवास हुआ था। आपकी दो रचनाओं का विवरण-उद्धरण आगे दिया जा रहा है। १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जोन गुर्जर कवियो भाग ४ पृ० ३४२ (न० सं०)। २. वही भाग ३ पृ० १२२६-२७ (प्र० सं०) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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