SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गजविजय अन्त-मनवंछित मे सम्पद पामे, रसवन्ता अह मुणींदा, गजकुशल पण्डित कहे मुजने, नित-नित सुख आणंदा ।' गजविजय--आप तपागच्छीय विजयप्रभसूरि के प्रशिष्य एवं प्रीतिविजय के शिष्य थे। आपने सं० १७७९ आशो शुक्ल ७ सोमवार को फलोधी में 'जयसेन कुमार चौपाई' पूर्ण की। रचनाकाल निम्नवत् बताया है-- संवत सतरंगुण्यासीई मास आसोज मझार के, तिथि सातम शुक्ल गिणोजे, उदधिसुत कह्यो वार के, संवत सतर गुणरासीई । गुण्यासीइं ओवरसमांहे, नगर फलवरधी सही, श्री शांतिनाथ जिणंद मूरति तास पसाइं ओ कही। रात्रि भोजन-निषेध विषय पर यह रचना की गई है। इनकी एक दूसरी रचना गुणावली सं० १७८४ का भी नामोल्लेख हुआ है किन्तु विवरण-उद्धरण अप्राप्त होने से यह निश्चय नहीं कि यह इन्हीं की रचना है। मुनिपति रास (सं० १७८१ फाल्गुन शुक्ल ६) का रचनाकाल इस प्रकार है-- "संवत सतेरसें इकयासी वर्षे फागण छठि" और गुरुपरम्परा विस्तार पूर्वक बताई गई है जिससे ज्ञात होता है कि आप तत्कालीन तपगच्छ प्रधान विजयक्षमा सूरि>विजयदेव>विजयप्रभ>प्रीतिविजय के शिष्य थे। कोटीकगच्छ चन्द्रकुल, वैरीशाखा में सुधर्मा स्वामी की परम्परा के साधु थे। इसका आदि देखिए-प्रणमुं जिनशासन धणी चोवीसमो जिनचंद, अलिय विघन दूरे हों, आपे परमानंद । अ सहू प्रणमी भाव सुं कहिसुं मुनिपति चरित्र, सांभलता सवि सुख लहे; जय सौभाग्य पवित्र । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १५३ १५४; भाग ३ पृ० १२०२ (प्र० सं०) भाग ४ पृ० २६१, २६२ (न० सं०) । २. वही भाग २ पृ० ५५३-५५४ (प्र.सं.)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy